श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
श्री हरिवंश-चरित्र के उपादान
श्री हित हरिवंश गोपाल भट्ट गोस्वामी का शिष्य बतलाने वाला दूसरा गौड़ीय ग्रन्थ बँगला भक्तमाल है। इसके कर्ता लालदास किंवा कृष्णादास है। इस ग्रन्थ में रचना काल नहीं दिया है किन्तु लालदास का एक अन्य ग्रंथ ‘उपासना चन्द्रामृत’ प्राप्त है जो सवंत 1819 की रचना है। (उपासना चन्द्रामृत पृ. 190) इस ग्रन्थ में उन्होंने अपनी गुरु-प्रणाली श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी में प्रारम्भ को है और अपने को उनकी शिष्य परम्परा में बतलाया है। लालदास ने अपने ‘भक्त माल’ के प्रारम्भ में नाभा जी की भक्तमाल के टीकाकार प्रियादास जी की टीका का अनुसरण करने को कहा है और लिखा है ‘मैं उनके पीछे चल कर कहीं, कहीं कुछ विस्तार भी करुँगा।’ यथा यथा प्रियादास संक्षेपे ते अति। बरलाना प्रवेशय साधारण मर्ति सेई सेई कौनौ कौनौ स्थाने किछूकिछू विस्तार करियाकरौंतार पाछूपाछू लालदास से अपने ग्रंथ में जहाँ तक प्रियादास जी के पीछे चलकर विस्तार किया है, वहीं तक कुशल रही है। श्रीहित हरिवंश एवं श्री हरिराम व्यास के चरित्रों में उन्होंने प्रियादास जी का साथ सर्वथा छोड़ दिया है और अपनी मनमानी बातें लिखी हैं। प्रियादास जी ने अपनी टीका में उत्तमदास जी कृत ‘श्री हरिवंश चरित्र’ का अनुसरण किया है। इस टीका में तीन कवित्त लग रहे हैं। दूसरे कवित्त में देववन से वृन्दावन आते समय श्री राधिका की आज्ञा से श्री हित हरिवंश द्वारा दो विप्र कन्याओं एवं भगवत-विग्रह के अंगीकार की बात लिखी है, जिससे स्पष्ट हो जाता है कि वृन्दावन आने से पूर्व ही हित प्रभु को राधिका जी की कृपा प्राप्त हो चुकी थी। तीसरे कवित्त में बतलाया गया है कि हितप्रभु ने राधावल्लभ लाल की आज्ञा से कुंज धाम के विलास और सेवा का प्रकाश किया था और जिन रसिकों ने राधा चरणों की प्रधानता स्वीकार की थी उनको यह प्रदान किया था। राधिका वल्लभलाल आज्ञा सो रसाल दई, इन उद्धरणों से स्पष्ट है कि लालदास ने श्री हित हरिवंश का चरित्र लिखने में प्रियादास जी की टीका की बजाय ‘प्रेम विलास’ का अनुसरण किया है। दोनों में अंतर इतना है कि लालदास का लिखने का ढंग ‘प्रेमविलास’ की अपेक्षा अधिक संयत है और उन्होंने प्रेमविलास वाले चरित्र के वीभत्स अंशों को छोड़ दिया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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