श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
श्रीहरिराम व्यास (सं. 1549-1655)
यह भी मालूम होता है कि व्यास जी को हिताचार्य का शिष्य न मानने वालों ने, प्राचीन-काल में ही, व्यास-वाणी के सम्बन्धित पदों को तोड़ना-मरोड़ना आरम्भ कर दिया था। 'भक्त कवि व्यास जी' के लेखक को व्यास-वाणी की जितनी प्रतियाँ उपलब्ध हुई हैं उनमें श्री हित जी को व्यास जी का गुरु सूचित करने वाले छंदो में आवश्यक परिवर्तन कर दिये गये हैं। उक्त लेखक को व्यास-वाणी की तीन प्रतियाँ मिली हैं जिनमें से एक सं. 1883 की है, दूसरी सं. 1888 की एवं तीसरी सं. 1894 की हैं। अभी तक उन्नीसवीं शती के अंतिम भाग से पूर्व की कोई प्रति प्राप्त नहीं थी। कुछ ही दिन पहिले व्यास-वाणी की दो प्रतियों का पता इन पंक्तियों के लेखक को चला है। इनमें से एक सं. 1791 की है और दूसरी सं. 1876 की। दोनों प्रतियाँ कोलारस, जिला शिव पुरी में सुरक्षित है। सं. 1791 वाली प्रति वहाँ के प्रसिद्ध रसिक भक्त पं. वासुदेव जी खेमरिया के पास है और सम्वत 1876 की प्रति वहाँ के गोपाल जी के मंदिर के अन्यतम सेवाधिकारी पं. व्रजवल्लभ जी के पास है। सं. 1791 वाली प्रति की पुष्पिका इस प्रकार है "इति श्री व्यास जी कृत साखी, विष्णुपद भाषा प्रबंध सम्पूर्ण। लिख्यतेज्येष्ठ मासे शुल्क पक्षे तिथौ नवम्यांगुरु वासरे सं. 1791। लिपि कृतं भूधर दासने शुभमस्तु लेखक पाठकयोश्चिरं तिष्ठतु।" इस प्रति का प्रारंभ साखियों से हुआ है और इसमें 67 साखियाँ दी हुई हैं। साखियाँ में यह दोहा भी अंकित है- कोटि-कोटि एकादशी महाप्रसाद को अंश। यह दोहा 'भक्त कति व्यास जी' में पृष्ठ 60 पर उद्धृत किया गया है और इसके बारे में यह कहा गया है कि व्यास वाणी की प्राप्त प्रतियों में नहीं पाया जाता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अठारहवीं शती के आरम्भ में
संबंधित लेख
विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज