हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 251

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य


श्रीहित हरिवंश की दो 'पत्रियाँ' भी प्राप्‍त हैं जो उन्‍होंने अपने शिष्‍यों के नाम लिखी हैं। यह दोनो सोलहवीं शती के अंतिम दशक में या सत्रहवीं शताब्‍दी के प्रारंभिक वर्षो में लिखी गई थीं।

प्रथम पत्री।

श्री सकल गुण सम्‍पन्‍न, रस रीति बढ़ावन, चिरंजीव, मेरे प्राणन के प्राण वीठलदास जोग्‍य लिखितं श्रीवृन्‍दावन रजोप सेवी श्री हरिवंश जोरी-सुमिरन वचनौ। जोरी-सुमिरन मत्त रहौ। जोरी जोहैं सुख बरसत हैं। तुम कुशल स्‍वरूप हौ। तिहारे हस्‍ताक्षर बारम्‍बार आवत हैं। सुख अमृत स्‍वरूप हैं। पत्री वांचत आनंद उमड़ि चले है। मेरी बुद्धि को इतनी शक्ति नहीं जो कहि सकौं, पर तोहि जानत हों। श्रीस्‍वामिनी जू तुम पर बहुत प्रसन्‍न हैं। हम कहा आशीर्वाद देंय, हम यही आशीर्वाद देत हैं कि तिहारौ आयुष बढौ और तिहारी सकल सम्‍पति बढ़ो। तिहारे मन कौ मनोरथ पूर्ण होहु, हम नेत्रनि सुख देखे, हमारी भेट यही है। यहाँ की काहू बात की चिन्‍ता मत करौ, तेरी पहिंचाँन तें मोकूँ श्रीश्‍यामा जू बहुत सुख देत हैं। तुम लिखी जो दिन दश में आवैंगे, सोई आशा प्राण रहैं हैं। श्री श्‍यामा जू बेगि ले आवे। चिरंजीव कृष्‍णदास कौं जोरी प्रसन्‍न है। श्‍याम-वंदिनी विहार चंदन लेंनों। गोविन्‍ददास, संतदास की दंडौत, गाँगू मैदा को कृष्‍ण-सुमिरन बाँचनौं, कृष्‍णदास मोहनदास को कृष्‍ण-सुमिरन, रंगा की दंडौत, वनमाली धर्मशाला कौ कृष्‍ण-सुमिरन बाँचनो।

द्वितीय पत्री।

श्री वृषभानु नंदिनी जयति। जोग्‍य लिखित श्रीहरिवंश बीठलदास के कोटि-कोटि अपराध में खेबी, आगले पाछिले। बीठलदास मेरे प्राण हैं। जो शास्‍त्र-मर्यादा सत्‍य है और गुरु महिमा ऐसे ही सत्‍य है तो व्रज-नव तरुणि-कदम्‍ब-चूड़ामणि श्रीराधे तिहारे स्‍थापे गुरु-मार्ग विषै अविश्‍वास अज्ञानी को होत है, ताते यह मर्यादा राखनों। तुम दोऊ सफल आनंद बरसौ। बीठलदास को अही सींचनौं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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