हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 241

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

Prev.png
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य


श्रीहिताचार्य संस्कृत में भी बड़ी सरस रचना करते थे। उनका राधा-सुधा-निधि स्तोत्र अपनी स्निग्धता एवं रचना-सौष्ठव के लिये प्रसिद्ध है। अपने व्रज-भाषा के पदों में भी उन्होंने संस्कृत के अत्यन्त कोमल तत्सम शब्दों का प्रयोग प्रचुरता से किया है। कहीं-कहीं तो संस्कृत-व्याकरण से निष्पन्न रूप ज्यौं-के-त्यौं रखे हैं,

सकृदपि मयि अधरामृत मुपनय सुंदरि सहज सनेह।
तब पद पंकज कौ निजु मन्दिर पालय सखि मम देह।।[1]

जपत हरि बिबस तब नाम प्रतिपद विमल,
मनसि तब ध्यान तैं निमिष नहिं टरिबौ।[2]

इन पदों में व्रज भाषा का अत्यन्त परिमार्जित और वैभवशाली रूप दिखलाई देता है। भाषा की यह समृद्धि बहुत दिनों से चली आती हुई किसी अज्ञात परंपरा का चरम परिपाक हो सकती है। यह भी संभव है कि रचयिता के राग की तीव्रता ने उनकी भाषा को वह सौष्ठव और प्रवाह प्रदान किया है जो उनके पूर्व नहीं मिलता।

श्रीहित हरिवंश भक्ति-काव्य-गगन के परमोज्ज्वल नक्षत्र हैं। उन्होंने केवल श्रृंगार-रस का गान किया है और उनके बहुत थोड़े पद मिलते हैं। इन कारणों को लेकर उनको वह ख्याति प्राप्त न हीं है जो सूरदास जी को है किन्तु श्री परशुराम चतुर्वेदी के शब्दों में यह सत्य है कि ‘सूरदास के चुने हुए पदों में यदि हरिवंश जी के पद यत्र-तत्र सम्मिलित कर दिये जायँ तो निश्चय है कि इनकी गणना उनमें से सर्वश्रेष्ठ में होने लगेगी। सूरदास की रचनाओं में विषय की दृष्टि से वर्णनों का अधिक विस्तार है। फिर भी श्रृंगारिक भाव-चित्रण में इनसे अधिक सफलता नहीं है।'[3]

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हि. च. 66
  2. हि. च. 83
  3. मध्य कालीन प्रेम साधना पृ. 126

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः