श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य
सकृदपि मयि अधरामृत मुपनय सुंदरि सहज सनेह। जपत हरि बिबस तब नाम प्रतिपद विमल, इन पदों में व्रज भाषा का अत्यन्त परिमार्जित और वैभवशाली रूप दिखलाई देता है। भाषा की यह समृद्धि बहुत दिनों से चली आती हुई किसी अज्ञात परंपरा का चरम परिपाक हो सकती है। यह भी संभव है कि रचयिता के राग की तीव्रता ने उनकी भाषा को वह सौष्ठव और प्रवाह प्रदान किया है जो उनके पूर्व नहीं मिलता। श्रीहित हरिवंश भक्ति-काव्य-गगन के परमोज्ज्वल नक्षत्र हैं। उन्होंने केवल श्रृंगार-रस का गान किया है और उनके बहुत थोड़े पद मिलते हैं। इन कारणों को लेकर उनको वह ख्याति प्राप्त न हीं है जो सूरदास जी को है किन्तु श्री परशुराम चतुर्वेदी के शब्दों में यह सत्य है कि ‘सूरदास के चुने हुए पदों में यदि हरिवंश जी के पद यत्र-तत्र सम्मिलित कर दिये जायँ तो निश्चय है कि इनकी गणना उनमें से सर्वश्रेष्ठ में होने लगेगी। सूरदास की रचनाओं में विषय की दृष्टि से वर्णनों का अधिक विस्तार है। फिर भी श्रृंगारिक भाव-चित्रण में इनसे अधिक सफलता नहीं है।'[3] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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