हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 237

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य


यहाँ श्यामसुन्दर के श्याम कपोलों पर अवलंबित अलक की समता नील कमल के खंडों पर थकित रस-लंपट मधुप-अवली के साथ दी गई है। इन सुन्दर पंक्तियों में मधुप के साथ ‘थकित रस लंपट’ विशेषण का प्रयोग कपोलों पर पड़ी हुई अलक की ‘शिथिलता’ को लक्षित करा देता है। इसी प्रकार श्याम कपोलों का नील कमल के खंडों[1] के साथ सादृश्य उनकी मेदुरता को लक्षित करता है।

हिताचार्य ने अपने पदों में रूपक भी बड़े सुन्दर रखे हैं। राधाकृष्ण के लिये उनको सबसे अधिक प्रिय रूपक हंस-हंसिनी का है और इसका प्रयोग उन्होंने कई पदों में किया हैः-

हित हरिवंश हंस-हंसिनी साँवल गौर
कहौ कौन करै जल तरंगनि न्यारे।[2]

लाड़िली किशोर राज, हंस-हंसिनी समाज,
सींचत हरिवंश नैन सुरस सार री।[3]

हित हरिवंश हंस-हंसिनी समाज,
ऐसे ही करौ मिलि जुग-जुग राज।।[4]

तुम जु कंचन तनी, लालमर्कत मनी,
उभै कल हंस हरिवंश वलि दासु री।[5]

राधाकृष्ण श्रृंगार की मूर्ति हैं। श्रृंगार स्वभावतः उज्ज्वल होता है। युगल में उज्ज्वलता की पराकाष्ठा है। हंस-हंसनी का रूपक राधाकृष्ण की उज्ज्वलता की बड़ी सुन्दर अभिव्यक्ति करता है। साथ ही श्रृंगार रस की ‘शुचिता’ और ‘दर्शनीयता’ भी इसके द्वारा व्यक्त हो जाती है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. समूहों
  2. पद-1
  3. पद-76
  4. पद-27
  5. पद-26

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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