श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य
आजु सँभारत नाहिन गोरी। सुरतांत सौन्दर्य का वर्णन अन्य कृष्ण-भक्त कवियों ने भी किया है किन्तु इस क्षेत्र में श्रीहित हरिवंश अप्रतिम हैं। सुरत का अधिक वर्णन न करके सुरतांत का वर्णन करना, उनकी नागर-रसिकता का ही द्योतक है। साहित्य समीक्षकों ने बतलाया है कि कवि को जो बात कहनी होती है, उसको वह साधारणतया दो रूपों में कहता है- प्रस्तुत रूप में और अलंकार रूप में। प्रस्तुत में वर्ण्य विषय का सीधा-सादा वर्णन किया जाता है, अलंकार रूप में वही वर्णन अलंकारों के योग से होता है। आलंकारिक रूप योजना प्रस्तुत के प्रभाव को बढ़ाने के लिये की जाती है। श्री हित हरिवंश ने अपने कई पदों में बड़ी सुन्दर आलंकारिक योजना की है और उने इस प्रकार के पदों में ‘व्रज नव तरुणि कदंब मुकट मणि श्यामा आजु बनी’ से आरंभ होने वाला पद खूब प्रसिद्ध है। किन्तु उनके अधिकांश पदों में वर्ण्य विषय को प्रस्तुत रूप में ही उपस्थित किया गया है और अलंकारों के अभाव में भी वह अलंकृत प्रतीत होता है। सूरदास जी के रूप-वर्णन के पदों में अलंकारों की भरमार रहती है। वे जब श्रीकृष्ण, श्रीराधा या गोपियों का सौंदर्य-वर्णन करने लगते हैं तो उपमा, उत्प्रेक्षा और रूपकों की बाढ़ आ जाती है और सम्पूर्ण कवि-समय एवं पौराणिक उपमान इस कार्य में लगा दिये जाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हित चतु. 70
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