हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 232

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य


सुरतांत वर्णन का एक स्वतन्त्र पद देखिये,

आजु सँभारत नाहिन गोरी।
फूली फिरत मत्त करनी ज्यौं सुरत समुद्र झकोरी।।
आलस वलित अरुन धूसर मषि प्रगट करत दृग चोरी।
पिय पर करून अमी रस बरसत अधर अरुनता थोरी।।
बाँधत भृंग उरज अंबुज पर अलक निबंध किशोरी।
संगम किरचि-किरचि कंचु कि बँद सिथिल भई कटि-डोरी।।
देत असीस निरखि जुवती जन जिनिकै प्रीति न थोरी।
(जैश्री) हित हरिवंश विपिन-भूतल पर संतत अविचल जोरी।।[1]

सुरतांत सौन्दर्य का वर्णन अन्य कृष्ण-भक्त कवियों ने भी किया है किन्तु इस क्षेत्र में श्रीहित हरिवंश अप्रतिम हैं। सुरत का अधिक वर्णन न करके सुरतांत का वर्णन करना, उनकी नागर-रसिकता का ही द्योतक है।

साहित्य समीक्षकों ने बतलाया है कि कवि को जो बात कहनी होती है, उसको वह साधारणतया दो रूपों में कहता है- प्रस्तुत रूप में और अलंकार रूप में। प्रस्तुत में वर्ण्य विषय का सीधा-सादा वर्णन किया जाता है, अलंकार रूप में वही वर्णन अलंकारों के योग से होता है। आलंकारिक रूप योजना प्रस्तुत के प्रभाव को बढ़ाने के लिये की जाती है। श्री हित हरिवंश ने अपने कई पदों में बड़ी सुन्दर आलंकारिक योजना की है और उने इस प्रकार के पदों में ‘व्रज नव तरुणि कदंब मुकट मणि श्यामा आजु बनी’ से आरंभ होने वाला पद खूब प्रसिद्ध है। किन्तु उनके अधिकांश पदों में वर्ण्य विषय को प्रस्तुत रूप में ही उपस्थित किया गया है और अलंकारों के अभाव में भी वह अलंकृत प्रतीत होता है। सूरदास जी के रूप-वर्णन के पदों में अलंकारों की भरमार रहती है। वे जब श्रीकृष्ण, श्रीराधा या गोपियों का सौंदर्य-वर्णन करने लगते हैं तो उपमा, उत्प्रेक्षा और रूपकों की बाढ़ आ जाती है और सम्पूर्ण कवि-समय एवं पौराणिक उपमान इस कार्य में लगा दिये जाते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हित चतु. 70

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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