श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य
श्रीहित हरिवंश काल- सं. 1590 से 1650 तक यह वृन्दावन रस की स्थापना का काल है। श्री हित-हरिवंश इस रसरीति के स्थापक एवं इसके सबसे बड़े गायक हैं। इनके व्रजभाषा में केवल 108 पद और 4 दोहे प्राप्त हैं। इनमें से 84 पद ‘हित चतुरासी’ के नाम से प्रसिद्ध हैं और 24 पद एवं 4 दोहों के संग्रह को ‘फुटकर वाणी’ कहते हैं। अनुश्रुति के अनुसार ‘हित चतुरासी’ का संकलन हिताचार्य के अंतर्धान के बाद हुआ है। इस संकलन में लीला क्रम तो नहीं है किन्तु राग-रागनियों का क्रम प्रातःकाल से रात्रि पर्यन्त का मिलता है। ‘हित चतुरासी’ के पद 14 रागों में बँधे हुए हैं। इनमें 6 पद विभास में, 7 पद बिलावल में, 4 टोड़ी में, 2 आसावरी में, 7 धनाश्री में, 2 वसंत में, 7 देव गंधार में, 16 सारंग में, 4 मलार में, 1 गौड़ में, 9 गौरी में, 6 कल्याण में, 9 कान्हरे में, 4 केदारे में हैं। श्रृंगार रस के वर्णनों में भोग्य के रूप-माधुर्य का वर्णन अधिक चमत्कार पूर्ण किया जाता है। संस्कृत-साहित्य में स्त्री भोग्य रही है अतः उसमें शकुन्तला, पार्वती, दमयन्ती आदि अनेक सौंदर्य-प्रतिमायें देखने को मिलती हैं। श्रीमद्भागवत में कृष्ण-कथा के अनुरोध से, पुरुष सौंदर्य का वर्णन अधिक लगन के साथ किया गया है। श्रीकृष्ण की एक से एक सुन्दर छवि-छटायें इस ग्रन्थ में बिखरी पड़ी हैं। भागवत के बाद श्रीकृष्ण की श्रृंगार लीला को गाने वाले जयदेव, विद्यापति, चंडीदास आदि कवीश्वरों ने श्रीकृष्ण-सौंदर्य के जो नितांत मनोरम चित्र रचे हैं, वे भारतीय सौंदर्य-विधान के उज्ज्वल रत्न हैं। हिन्दी में सूरदास जी ने यही कार्य अत्यन्त निपुणता के साथ किया है। उनके हृदय के अगाध प्रेम में श्रीकृष्ण की बाल, पौगण्ड और किशोर छटायें समान रूप से प्रतिबिंबित हुई हैं। कृष्ण-सौन्दर्य के कदाचित वे सबसे बड़े कवि हैं। इन सभी कवियों के वर्णनों में श्रीकृष्ण-सौंदर्य स्त्री-सौंदर्य के बहुत निकट आ गया है, फिर भी वह पुरुष-सौंदर्य है। सूरदास जी ने गोपियों और विशेषतः श्रीराधा के अत्यन्त सुन्दर चित्र खींचे हैं किन्तु गोपियों और श्रीराधा के साथ उनकी प्रीति श्रीकृष्ण के सम्बन्ध से है। उनका सीधा नाता श्रीकृष्ण के साथ ही है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज