हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 224

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य


विहरत दोऊ प्रीतम कुंज।
अनुपम गौर श्याम तन शोभा, बन बरसत सुख पुंज।।
अद्भुत खेत महा मनमथ कौ, दुंदुभि भूषन राव।
जूझत सुभट परस्पर अँग-अँग, उपजत कोटिक भाव।।
भर संग्राम श्रमित अति आवला, निद्रायत कल नैन।
पिय के अंक निसंक तंक तन आलस जुत कृत सैन।।
लालन मिस आतुर पिय परसत, उरू नाभि उरजात।
अद्भुत छटा बिलोकि अवनि पर विथकित वेपथ गात।।
नागरि निरखि मदन विष व्यापत, दियौ सुधाधर धीर।
सत्त्वर उठे महा मधु पीवत, मिलत मीन मिव नीर।।
अब हीं मैं मुख मध्य बिलोके, विंबाधर सु रसाल।
जाग्रत ज्यौं भ्रम भयो परयौ मन, सुत मनसिज कुल जाल।।
सकृदपि मधि अधरामृत मुपनय सुंदरि सहज सनेह।
तब पद-पंकज कौ निजु मंदिर पालय सखि मम देह।।
प्रिया कहत कहु कहाँ हुते पिय नव निकुंज वर राज।
सुन्दर बचन-रचन कत वितरत रति-लंपट बिनु काज।।
इतनौं श्रवन सुनत मानिनि-मुख अंतर रह्यौ न धीर।
मति कातर विरहज दुख व्यापत बहु तर स्वाँस समीर।।
(जै श्री) हित हरिवंश भुजनि आकर्षे लै राखे उन माँझ।
मिथुन मिलत जु कछुक सुख उपज्यौ त्रुटि लवमिव भइ साँझ।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हि. च. 66

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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