श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य
श्रीहित हरिवंश के द्वारा प्रतिष्ठित श्रीराधा के कृष्णाराध्य रूप का एवं उनके द्वारा प्रचलित निकुंजोपासना तथा सखीभाव का प्रभाव स्पष्ट रूप से अन्य समकालीन सम्प्रदायों पर पड़ा था। सूरदास जी के पदों में श्रीराधा के स्वरूप को हम जो क्रमशः उठता हुआ देखते हैं, एवं सखीभाव संवलित निकुंजोपासना के जो अनेक उदाहरण उनकी रचनाओं में मिलते हैं, यह सब इसी प्रभाव का परिणाम है। ‘हित-चतु-रासी’ के कई पद एवं हरिराम व्यास की संपूर्ण ‘रास पंचाध्यायी’ बहुत दिनों पूर्व ही सूर सागर में ग्रथित कर लिये गये थे और वे ऐसे स्वाभविक ढ़ंग से वहाँ बैठ गये हैं कि ‘नागरी-प्रचारिणी’ वाले खोज पूर्ण संस्करण में भी उनको पकड़ा नहीं जा सका है। हमको स्मरण आता है कि द्विवेदी-युग में सूरसागर में मिलने वाले हित चतुरासी के पदों को लेकर ‘सरस्वती’ में एक विवाद चला था। सूरदास जी का जन्म निर्विवाद रूप से हित जी से पूर्व हुआ था और इसी आधार पर इन पदों को सूरदास जी की रचना सिद्ध किया गया था। किन्तु इस पक्ष के समर्थकों ने इस बात पर गौर नहीं किया कि सूरदास जी श्रीहित हरिवंश से अवस्था में बड़े होते हुए भी उनके बाद में 25 वर्ष तक जीवित रहे थे और उने जीवन काल में ‘हित चतुरासी’ ही नहीं हित-सम्प्रदाय के अनेक रसिक महात्माओं की वाणियाँ प्रगट हो चुकी थीं। ऐसे विवादों को मिटाने का सबसे अधिक निर्भ्रान्त तरीका प्राचीन प्रतियों की तुलना करने का है। हित चतुरासी की अनेक प्राचीन प्रतियाँ और टीकायें उपलब्ध हैं और उनके तुलनात्मक अध्ययन से इस संदेह को निवृत्त किया जा सकता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑
वल्लभ सुत विट्ठल भये अति प्रसिद्ध संसार।
सेवा विधि जिहि समय की कीन्ही तेहि ब्यौहार।।
राग भोग अद्भुत विविध जो चहिये जिहि काल।
दिनहि लड़ाये हेत सौं गिरिधर श्री गोपाल।। - ↑ भक्त नामावली
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