हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 190

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

Prev.png
सिद्धान्त
नित्य-विहार


इस बात को अधिक स्पष्ट करते हुए वे कहते हैं ‘प्रेम का मार्ग इतना विकट है कि उस पर दौड़ कर नहीं चला जा सकता। इस पर चलने के लिये तन और मन को समेट कर बहुत जमा कर पैर रखने होते हैं। रसिक-नरेश[1] के मार्ग पर चलना नितांत विकट है। जो अपने तन और मन को उबाल कर, ठंडा करके, छान डालते हैं वही इस मार्ग पर चल पाते हैं, अन्य लोग तो केवल बकवास करते हैं। जिस स्थान पर मन की भी गति नहीं होती वहाँ शरीर को लेकर निकलना होता है। व्यासनंदन[2] के चरणों का बल मिलने पर ही इस प्रकार चला जा सकता है।’

कठिन पहुँचनौ प्रेम करै पंथ न निकस्यौ धाइ।
तन मन दसा समेटि गाढ़े धरने पाँइ।।
मारग रसिक नरेस के निपट विकट है चाल।
तन-मन औंटि, सिराय, गरि वृथा बजादत गाल।।
जामें मन की गति नहीं तामें काढ़ै गात।
व्याससुवन पद पाइ बल इहि विधि निकरयौ जात।।

उपासना के मार्ग से चलकर साधक का मन जब नित्य प्रेम-विहार के आनंदोल्लास में प्रविष्ट होता है तब उसकी सब क्रियायें लोक-बाह्य बन जाती हैं। उसकी हृदय-ग्रन्थियों का भेदन हो जाता है और उसके संपूर्ण संशय छिन्न हो जाते हैं। उसकी उस समय की स्थिति का वर्णन करते हुए सेवक जी कहते हैं, ‘जिस पर श्री हरिवंश की कृपा होती है, वह राधा-हरि के नित्य विहार का दर्शन पुलकित शरीर से करता रहता है और उसके नेत्रों से आनंद की झड़ी लगी रहती है। वह कभी रोता है, कभी आनंदोल्लास में गान करता है और कभी अट्टहास करता है। वह क्षण-क्षण में श्यामाश्याम के साथ विहरण करता है, क्षण-क्षण में उसका अभंग यश-गान करता है। नित्य किशोर के दर्शन से उसकी रति नित्य नवीन बनती रहती है और व युगल की आलस्य भरी प्रातः कालीन छवि का नित्य दर्शन करता रहता है। सघन कुंज के छिद्रों से युगल की अद्भुत तन-कांति को देखकर उसके नेत्र तृप्त नहीं होते।’

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हितप्रभु
  2. हितप्रभु

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः