हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 16

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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श्री हरिवंश-चरित्र के उपादान


श्री हरिवंश के पूर्वज देववन के रहने वाले थे। इनके पिता व्यास मिश्र यजुर्वेदीय गौड़ ब्राह्मण थे। इनका गोत्र काश्यप एवम शाखा माध्यंदिनी थी। व्यास मिश्र उस समय के प्रसिद्ध जयोतिषी थे और इस विद्या के द्वारा उन्होंने प्रचुर संपत्ति प्राप्ति की थी। धीरे-धीरे उनकी ख्याति तत्कालीन पृथ्वीपति के कानों तक पहुँची और उसने बहुत आदर-सहित व्यास मिश्र को बुुला भेजा। व्यास मिश्र बादशाह चार श्रीफल लेकर मिले। बादशाह उनसे बातचीत करके उनके गुणों पर मुग्ध हो गया और उनको ‘चार हजारी की निधि’ देकर सदैव अपने साथ रखने लगा। व्यास मिश्र की समृद्धि का अब कोई ठिकाना नहीं रहा और वे राजसी ठाठ-बाट से रहने लगे।

व्यास मिश्र के पूर्ण सुखी जीवन में एक ही प्रबल अभाव था। वे निस्संतान थे। इस अभाव के कारण वे एवं उनकी पत्नी तारारानी सदैव उदास रहते थे। व्यास मिश्र जी बारह भाई थे जिनमें एक नृसिंहाश्रम जी विरक्त थे। नृसिंहाश्रम जी उच्चकोटि के भक्त थे, एवं लोक में उनकी सिद्धता की अनेक कथायें प्रचलित थीं। विरक्त होते हुए भी इनका व्यास जी से स्नेह था और कभी-कभी यह उनसे मिलने आया करते थे। एक बार मिश्र दंपति को समृद्धि में भी उदास देख कर उन्होंने इसका कारण पूछा। व्यास मिश्र ने अपनी संतान-हीनता को उदासी का कारण बताया और नृसिंहाश्रम जी के सामने ‘परम भागवत रसिक अनन्य’ पुत्र प्राप्त करने की अपनी तीव्र अभिलाषा प्रगट की। नृसिंहाश्रम जी ने उत्तर दिया, ‘भाई, तुम तो स्वयं ज्योतिषी हो, तुमको अपने जन्माक्षरों से अपने भाज्य की गति को समझ लेना चाहिये ओर संतोष पूर्ण जीवन यापन करना चाहिये’।

यह सुनकर व्यास मिश्र तो चुप हो गये, किन्तु उनकी पत्नी ने दृढ़ता पूर्वक पूछा- ‘यदि सब कुछ भाग्य का ही किया होता है, तो लोग आपके पीछे क्या आशा लेकर दौड़ते हैं? यदि विधि का बनाया विधान ही सत्य है, तो इसमें तुम्हारी महिला क्या रही?’ इस बार नृसिंहाश्रम जी उत्तर न दे सके और विचार मग्न होकर वहाँ से उठ गये।

एकान्त वन में जाकर उन्होंने अपने इष्ट का आराधन किया और उनसे व्यास मिश्र की मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना की। रात्रि को स्वप्न में प्रभु ने उनको आदेश दिया कि ‘तुम्हारे सत्संकल्प को पूर्ण करने के लिये स्वयं हरि अपनी वंशी-सहित व्यास मिश्र के घर में प्रगट होंगे’। नृसिंहाश्रम जी ने यह सन्देश व्यास मिश्र को सुना दिया और इसको सुनकर मिश्र-दंपति के आनन्द का ठिकाना नहीं रहा।

बादशाह व्यास मिश्र जी को सर्वत्र अपने साथ तो रखता ही था। श्री हित हरिवंश के जन्म के समय भी व्यास मिश्र अपनी पत्नी-सहित बादशाह के साथ थे और ब्रजभूमि में ठहर रहे थे। वहीं मथुरा से पाँच मील दूर ‘बाद’ नामक ग्राम में वैशाख शुक्ला एकादशी सोमवार सं. 1559 को अरुणोदय काल में श्रीहित हरिवंश का जन्म हुआ। महापुरुषों के साध साधारणतया जो मांगलिकता संसार में प्रगट होती है, वह श्री हित हरिवंश के जन्म के साथ भी प्रगट हुई और सब लोगों में अनायास धार्मिक रुचि, पारस्परिक प्रीति एवं सुख-शान्ति का संचार हो गया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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