हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 158

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त
श्री हित हरिवंश


उनके लिये यह रासलीला भी उनके राधापति की ही की ही लीला है और इसके द्वारा ‘रसिक राधापति’ के यश का वितान जग में छा गया है।

बरसत कुमुम सुरित नभ-नायक इन्द्र निसान बजायौ।
(जयश्री) हित हरिवंश रसिक राधापति जस-बितान जग छायौ।।[1]

श्री हरिराम ब्यास की ‘रास पंचाध्यायी’ बहुत दूर तक शुकोक्त पंचाध्यायी का हिन्दी भाषान्तर ही है किन्तु जहाँ श्यामसुंदर के अन्तर्धान होने की बात आती है ब्यास जी, हितप्रभु का पदानुसरण करके बोल उठते हैं ‘अन्तर्धान होना रस को विरस करना है और यह कार्य श्यामसुन्दर को गोपियों का अभिमान देखकर करना पड़ा था। इसके बाद गोपीजनों को तीव्र विरहानुभव हुआ। विरह-कथा में मुझको कोई सुख नहीं मिलता।’

रस में विरस जु अंतधीन, गोपिनु कै उपज्यौ अभिमान।
                        विरह-कथा में कौन सुख?

हितप्रभु वंशी के अवतार थे अतः उनके द्वारा प्रसिद्ध रास के रमणीय स्थलों का आस्वाद करना स्वाभाविक था। हितप्रभु के अनुयायी रसिकों ने यह देखकर की उनका आराध्य अन्तरंग रास ही है, केवल उसी का गान अपनी वाणियों में किया है।

अनेक लोगों को इस बात पर आश्चर्य होता है कि संप्रदाय में हिताचार्य को वंशी का अवतार तो माना जाता है किन्तु राधावल्लभोय साहित्य में वंशी से संबंधित पद बहुत कम मिलते हैं। इसके विरुद्ध अष्टछाप के महात्त्माओं ने वंशी की प्रशंसा में अनेक सुन्दर पद कहे हैं। किन्तु, हम अभी देख चुके हैं कि इस संप्रदाय में रास-रस का प्रकाश श्री शुक-वर्णित रास से भिन्न प्रकार से हुआ है। अतः उस रास की प्रकाशिका वंशी का गुणगान संप्रदाय के साहित्य में अधिक न होना ही स्वाभाविक है। राधावल्लभीय साहित्य में सैकड़ों की संख्या में मिलने वाली श्री हिताचार्य की बधाईयों में, वस्तुतः, इस भिन्न प्रकार के रास-विलास की प्रकाशिका वंशी का ही गुणगान किया गया है। उदाहरण के लिये एक जन्म-मंगल का एक छंद उद्धृत किया जाता है;

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हि. च. 36

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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