श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
श्री हित हरिवंश
बरसत कुमुम सुरित नभ-नायक इन्द्र निसान बजायौ। श्री हरिराम ब्यास की ‘रास पंचाध्यायी’ बहुत दूर तक शुकोक्त पंचाध्यायी का हिन्दी भाषान्तर ही है किन्तु जहाँ श्यामसुंदर के अन्तर्धान होने की बात आती है ब्यास जी, हितप्रभु का पदानुसरण करके बोल उठते हैं ‘अन्तर्धान होना रस को विरस करना है और यह कार्य श्यामसुन्दर को गोपियों का अभिमान देखकर करना पड़ा था। इसके बाद गोपीजनों को तीव्र विरहानुभव हुआ। विरह-कथा में मुझको कोई सुख नहीं मिलता।’ रस में विरस जु अंतधीन, गोपिनु कै उपज्यौ अभिमान। हितप्रभु वंशी के अवतार थे अतः उनके द्वारा प्रसिद्ध रास के रमणीय स्थलों का आस्वाद करना स्वाभाविक था। हितप्रभु के अनुयायी रसिकों ने यह देखकर की उनका आराध्य अन्तरंग रास ही है, केवल उसी का गान अपनी वाणियों में किया है। अनेक लोगों को इस बात पर आश्चर्य होता है कि संप्रदाय में हिताचार्य को वंशी का अवतार तो माना जाता है किन्तु राधावल्लभोय साहित्य में वंशी से संबंधित पद बहुत कम मिलते हैं। इसके विरुद्ध अष्टछाप के महात्त्माओं ने वंशी की प्रशंसा में अनेक सुन्दर पद कहे हैं। किन्तु, हम अभी देख चुके हैं कि इस संप्रदाय में रास-रस का प्रकाश श्री शुक-वर्णित रास से भिन्न प्रकार से हुआ है। अतः उस रास की प्रकाशिका वंशी का गुणगान संप्रदाय के साहित्य में अधिक न होना ही स्वाभाविक है। राधावल्लभीय साहित्य में सैकड़ों की संख्या में मिलने वाली श्री हिताचार्य की बधाईयों में, वस्तुतः, इस भिन्न प्रकार के रास-विलास की प्रकाशिका वंशी का ही गुणगान किया गया है। उदाहरण के लिये एक जन्म-मंगल का एक छंद उद्धृत किया जाता है; |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हि. च. 36
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