श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
श्री हित हरिवंश
आजु मंगल मंजु माधव रितु बसंत लखी रली। हितप्रभु के जन्म की मंगल-बधाइयों में से अनेक में उनकी ‘प्राणनाथ श्रीश्यामा’ निकुंज-भवन में अपनी अंतरंगा हित सजनी की जन्मगांठ मनाती दिखलाई देती हैं। ‘हित अलि को स्नान कराकर वे स्वयं अपने हाथों से उनको पीत अंबर और पुष्पों के आभूषण पहिनाति हैं। निकुंज मंदिर में पुष्पों का मंडप छा दिया जाता है और उस पर अनेक रंग की ध्वजा लगादी जाती हैं। रत्न-खचित आँगन में गज मोतियों से चैक की रचना होती है और चारों ओर कनक-कदली के खंभे लगा दिये जाते हैं। मंडप में रतन जटित सिंहासन पर युगल आकर बैठते हैं और एक मणिमय चौकी पर हित सजनी को बैठाया जाता है। युगल स्नेह पूर्वक हित सजनी का मुख पानों से भर देते हैं और अपने रस के प्रागट्य कर्ता के जन्म का मंगल-गान करते हैं। इसके बाद, नाचत मोर मंडली आगैं। श्रीहित हरिवंश का तीसरा रूप वंशी रूप है। वंशी और श्री हरिवंश में धर्म की समानता देखकर यह रूप निर्धारित किया गया है। वंशी का प्रधान धर्म रास-रस का प्रकाश करना है। श्रीमद्भागवत में हम देखते हैं कि भगवान की ‘रमणोच्छा’ की पूर्ति का एक मात्र साधन वंशी है और वह इस कार्य को रास-रस का प्रकाश करके करती है। वह रास रस की गायिका है, प्रकाशिका है। श्री हित हरिवंश ने अपनी वाणी में एक मात्र रास-रस का गान किया है और इस प्रकार उनका एवं वंशी का संपूर्ण साधर्म्य है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीसहचरि सुख
संबंधित लेख
विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज