हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 155

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त
श्री हित हरिवंश


आजु मंगल मंजु माधव रितु बसंत लखी रली।
अष्ट अलि हित एक देंखत खिलीं ललितादिक अली।।[1]

हितप्रभु के जन्म की मंगल-बधाइयों में से अनेक में उनकी ‘प्राणनाथ श्रीश्यामा’ निकुंज-भवन में अपनी अंतरंगा हित सजनी की जन्मगांठ मनाती दिखलाई देती हैं। ‘हित अलि को स्नान कराकर वे स्वयं अपने हाथों से उनको पीत अंबर और पुष्पों के आभूषण पहिनाति हैं। निकुंज मंदिर में पुष्पों का मंडप छा दिया जाता है और उस पर अनेक रंग की ध्वजा लगादी जाती हैं। रत्न-खचित आँगन में गज मोतियों से चैक की रचना होती है और चारों ओर कनक-कदली के खंभे लगा दिये जाते हैं। मंडप में रतन जटित सिंहासन पर युगल आकर बैठते हैं और एक मणिमय चौकी पर हित सजनी को बैठाया जाता है। युगल स्नेह पूर्वक हित सजनी का मुख पानों से भर देते हैं और अपने रस के प्रागट्य कर्ता के जन्म का मंगल-गान करते हैं। इसके बाद,

नाचत मोर मंडली आगैं।
गावत शुक-पिक अति अनुरागैं।।
देत मधुप मृदु सुर सुख साजैं।
कूजत हंस बीन सी बाजैं।।
बजत बीन नवीन तिन संग श्यामा-श्यामा नाचहीं।
कहत सूहौ राग सूहे करत चित निल राचहीं।।
लाल मुरली में कहत सोई बाल नूपुर में लयौं।
प्रेमदास हित रींझि यह चिर सहचरिनु आनंद दयौ।।

श्रीहित हरिवंश का तीसरा रूप वंशी रूप है। वंशी और श्री हरिवंश में धर्म की समानता देखकर यह रूप निर्धारित किया गया है। वंशी का प्रधान धर्म रास-रस का प्रकाश करना है। श्रीमद्भागवत में हम देखते हैं कि भगवान की ‘रमणोच्छा’ की पूर्ति का एक मात्र साधन वंशी है और वह इस कार्य को रास-रस का प्रकाश करके करती है। वह रास रस की गायिका है, प्रकाशिका है। श्री हित हरिवंश ने अपनी वाणी में एक मात्र रास-रस का गान किया है और इस प्रकार उनका एवं वंशी का संपूर्ण साधर्म्‍य है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीसहचरि सुख

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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