श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
सहचरी
अरबरात नैन-प्राण गौर श्याम देखे बिन, दूसरी उत्तर देती है ‘हे सखी, तू थोड़ा धीरज रख। देख तो सही इन परम सुकुमारों को शयन किये अभी अधिक समय नहीं हुआ है। मैं तो यह चाहती हूँ कि इस समय पवन मंद-मंद चले, रविजा प्रवाह रोक कर स्थिर हो जाय और पक्षीगण मौन धारण कर लें। जब तक यह दोनों रसिक शय्या का त्याग न करें, तब तक कमल न खिलैं और तारों की ज्योति क्षीण न हो। जब तक यह सचेत न हों भोर का समय भी चुपचाप निकल जाय!' वारिज खिलौ न तौलौ, रहौ तारा जोति जौलौं, इसी प्रकार युगल को भोजन कराते समय एवं विवाह-विनोद की रचना करते समय सखीगण वत्सल रंजित उज्ज्वल प्रीति का आस्वाद करती हैं। चाचाजी कहते हैं ‘सखीगण को नव-दंपति रूपी खिलौना मिल गये हैं और वे अपना मन उनको देकर उनका मन लिये रहती हैं। यह साँवल और गौर हंस-शावक वृन्दा-कानन रूपी छवि–सरोवर में क्रीडा करते रहते हैं। यह दोनों क्षण-क्षण में नये-नये प्रेम कौतुक करते हैं और सखीगण नेत्रों की ओक[3] से लीलामृत का पान करती रहती हैं।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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