श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
श्रीराधा
इसलिये, ध्रुवदासजी ने श्रीराधा के रूप की सबसे बड़ी अद्भुतता यह बतलाई है कि इसको जो देख पाता है, वह भी रूपवान हो जाता है। याकौ रूप जु देखै आई, सोऊ रुपवंत ह्वै जाई। रूप की यह परात्पर सीमा, मृदुता, दयालुता और कृपालुता की भी राशि है। इनको कभी भूलकर भी क्रोध नहीं आता और इनके हृदय में तथा मुख पर सदैव हास छाया रहता है। प्यारे श्यामसुन्दर की यह सुकुमारी प्रिया जिनकी उपास्य हैं वे अनेक वार धन्य हैं। इस उपासना के सुख को छोड़कर अन्य संपूर्ण सुख दुख रूप हैं।’ सहज सुभाव परयौ नवल किशोरी जू कौ, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्री ध्रुवदास
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