हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 124

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

Prev.png
सिद्धान्त
श्‍याम-सुन्‍दर

चूनरी लाल सुरंग छबीली की, ओढै छबीली महा छवि पाई।
केसन गूँथि रची रुचि माँगरु, नैननि जंजन-रेख बनाई।।
बैंदी दई हँसि लाड़िली रंग सौं, बेसर लैं अपनी पहिराई।
रूप चढ़यौ, मन मोद बढ़यौ, ध्रुव देखत नैन निमेष भुलाई।।[1]

रसिक भक्तों ने श्रृंगार-मूर्ति श्‍याम सुन्‍दर के रूप-गुण का आस्‍वाद अनेक प्रकार से किया है। मीराबाई के सामन कुछ भक्तों ने उनको अपना परमकांत मान कर उनके साथ सीधा संबंध स्‍थापति किया है। अन्‍य भक्तों ने श्रीराधा किंवा गोपीगण के राग का अनुगमन करके उनके रूप-माधुर्य का आस्‍वाद किया है। हिताचार्य का प्रकार इन दोनों से भिन्न है। वे श्रीकृष्‍ण को अपना प्राणवल्‍लभ नहीं मानते और न श्रीराधा के राग का अनुगमन करके उन त‍क पहुँचने की चेष्टा उनकी है। उनकी ‘प्राणनाथ’ श्रीराधा हैं और उनही के नेह-नाते से श्‍यामसुन्‍दर उनको प्रिय हैं। श्रीराधा के चरणों में घनश्‍याम की अत्‍यन्‍त आसक्ति देखकर व्‍यास कुमार (हितप्रभु) उन पर रीझ गये है और उन्‍होंने इस ‘अविचल जोड़ी’ को अपने हृदय का हार बना लिया है।

व्‍यासनंद के प्राणधन गौर वर्ण निजु नाम।
ताके नाते नेह सौं प्‍यारौ प्रीतम श्‍याम।।
अति आसक्ति लखि लाल की रीझे व्‍यास कुमार।
यह जोरी अविचल सदा कीन्‍ही निज उर-हार।।[2]

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीध्रुवदास भजन श्रृंगार
  2. सुधर्म बोधिनी

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः