श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
श्याम-सुन्दर
भये दीन यौं तजी वड़ाई, पुनि ताकी वातैं न सुहाईं। सूरदासजी ने गोपियों को ‘प्रेम की धुजा’ कहा है। उनके अद्भुत राग का अनुगमन करके ही प्रेम-राज्य में प्रवेश होता है। नित्य प्रेम-विहार में सखी गण श्यामसुन्दर से ‘कुंज महल की वाट’ बताने की प्रार्थना करती हैं। छैल छबीले हो लाल, लटकत-लटकत आईयो। श्यामसुन्दर में प्रेमी की अकल्पनीय दशायें प्रकट होती हैं। श्रीराधा में उनकी आसक्ति इतनी प्रबल है कि उसकी समता ढूंढ़े नहीं मिलती। वे स्वयं मदन मोहन हैं। उनकी परछांही देखकर कोटि मदन व्याकुल हो जाते है। देखत ही तिनकी परछांही, मदन कोटि व्याकुल ह्वै जाहीं। किन्तु श्रीराधा के प्रेम- सौन्दर्य ने उनको इतना अधीर बना रखा है कि ‘कोटि कामिनी–कुल’ से घिरे रहने पर भी उनको धीरज नहीं बधँता। ‘निकट नवीन कोटि कामिनी-कुल धीरज मनहिं न आनै’[3] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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