श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
युगल-केलि (प्रेम-विहार)
जीवन-मद, नव मेह-मद, रूप मदन मद-मोद। मदों का मत्त बनना आसाधारण बात है और वह इस प्रेम-विहार में ही संभव बनता है। मत्त बनने का परिणाम घूमना है। वृन्दावन के लता-गुल्म और खग-मृग, वहाँ के आकाश-पवन और दिशायें रसोन्मत्त बनकर सदैव झूमते रहते है और इन सब के बीच में रसमत्त श्याम-श्यामा एक दूसरे पर झूम-झूमकर प्रेम-रूप की वर्षा करते रहते हैं। विलक्षण बात है कि सदैव रसोन्मत स्थिति में रहते हुए भी युगल प्रीति के सहज अंगों का निर्वाह पूर्ण रूप से करते रहते हैं। हम देख चुके हैं कि इनकी प्रीति पूर्णतया तत्सुखमई है। श्रीराधा जो विलास करती हैं, वह श्याम सुन्दर के सुख के लिए होता है और श्याम सुन्दर की प्रत्येक क्रिया प्रिया के सुख के लिए होती है। परम रूप लावण्यमती श्री राधा जब प्रियतम के अनुराग-मद से भरकर अनंग-केलि में प्रवृत्त होती हैं तब ‘उनके सुरत-रंग से भरे अंगों से’ और उनके ‘हाव-भाव भृकुटि भंग’ से माधुरी की तरंगें उठने लगती हैं, जिनके द्वारा कोटि कामदेवों के मन मथित हो जाते हैं ! वे प्रियतम को संपूर्ण सुख देने के लिये उन पर प्यार की वर्षा कर देती हैं। अपनी उस परम-सुखमई स्थिति में भी श्याम सुन्दर केवल प्रिया के सुख को देखते हैं और इस भय से कि कहीं सुखदान में प्रिया को श्रम न हो गया हो वे उनसे ‘विरम-विरम’ कह उठते हैं। नागरी निकुंज ऐन, किसलय दल रचित सैन, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हि. च. 76
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