श्रीमद्भगवद्गीता -विश्वनाथ चक्रवर्त्ती पृ. 29

Prev.png

श्रीमद्भगवद्गीता -विश्वनाथ चक्रवर्त्ती
द्वितीय अध्याय

क्लैब्यं मास्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्तवोत्तिष्ठ परन्तप ॥3॥

भावानुवाद- यहाँ ‘क्लैब्यम्’ का अर्थ है- ‘क्लीव धर्मरूपी कातरता।’ हे पार्थ! तुम पृथा पुत्र होकर भी कातर हो रहे हो, अतः ‘मा स्म गमः’ अर्थात् कातर मत होओ। किसी और अधम क्षत्रिय को यह शोभा दे सकता है, परन्तु तुम तो मेरे सखा हो। अतः तुम्हें यह बिल्कुल भी शोभा नहीं दे रहा है। यदि तुम कहो कि हे कृष्ण! मेरी इस शूरता के अभाव-लक्षण से युक्त कातरता के प्रति आशंका न करें, यह तो धर्म की दृष्टि से भीष्म-द्रोणादि गुरुओं के प्रति विवेक (सम्मान) है तथा मेरे अस्त्रों से घायल होकर मरणोन्मुख दुर्बल धृतराष्ट्र पुत्रों के प्रति दया का ही परिचय है, तो इसका उत्तर है- ‘क्षुद्रम्’ अर्थात् ये दोनों तुम्हारे विवेक और दया नहीं, बल्कि शोक एवं मोह हैं। दोनों ही तुम्हारे मन की दुर्बलता के प्रकाशक हैं। अतएव इस हृदय-दौर्बल्य का परित्याग कर उठो। हे परन्तप! ‘पर’ अर्थात शत्रु को ताप प्रदान करते हुए युद्ध करो।।3।।

सारार्थ वर्षिणी प्रकाशिका वृत्ति-

श्री भगवान ने कहा- “शूरवीर और स्वधर्म में प्रतिष्ठित क्षत्रियों को युद्ध में कायरता शोभा नहीं देती। तुम देवराज इन्द्र के अंश से पृथा के पुत्र होने के कारण इन्द्र के समान ही तेजस्वी एवं बलवान हो। इसके अतिरिक्त मुझ महामहेश्वर के सखा होने के कारण तुम महाप्रभावशाली भी हो, अतः तुम्हारे लिए ऐसी कायरता अशोभनीय है। यदि तुम ऐसा कहो कि यह मेरी कायरता नहीं है, बल्कि मैं विवेक और दया के कारण ऐसा कह रहा हूँ, तो इसका उत्तर यह है कि - नहीं! ऐसा नहीं है। ये तम्हारा विवेक और दया नहीं अपितु मन की दुर्बलतास्वरूप शोेक और मोह है। क्योंकि, विवेक और दया से मन में भ्रान्ति उपस्थित नहीं होती, किन्तु तुम्हारी पूर्वोक्ति ‘न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः’[1] से यह स्पष्ट होता है कि तुम्हारा मन भ्रमित हो रहा है।”

यहाँ यह जान लेना अप्रासंगिक नहीं होगा कि दुर्वासा ऋषि ने अपनी सेवा-सुश्रूषा से प्रसन्न होकर कुन्ती को आवाहन करने का मन्त्र देते हुए वरदान दिया था कि इससे तुम जिस देवता का आहवान करोगी, वे ही देवता तुम्हें दर्शन देकर तुम्हारे मनोरथ को पूर्ण करेंगे। महाराज पाण्डु के आदेश से कुन्ती ने उस मन्त्र से धर्म, वायु और इन्द्र का आवाहन किया। उसी के फलस्वरूप क्रमशः युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन का जन्म हुआ। पाण्डु की दूसरी पत्नी माद्री के गर्भ से दोनों अश्विनी कुमारों के द्वारा नकुल और सहदेव का जन्म हुआ था।।3।।

Next.png

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता -विश्वनाथ चक्रवर्त्ती
अध्याय नाम पृष्ठ संख्या
पहला सैन्यदर्शन 1
दूसरा सांख्यायोग 28
तीसरा कर्मयोग 89
चौथा ज्ञानयोग 123
पाँचवाँ कर्मसंन्यासयोग 159
छठा ध्यानयोग 159
सातवाँ विज्ञानयोग 207
आठवाँ तारकब्रह्मयोग 236
नवाँ राजगुह्मयोग 254
दसवाँ विभूतियोग 303
ग्यारहवाँ विश्वरूपदर्शनयोग 332
बारहवाँ भक्तियोग 368
तेरहवाँ प्रकृति-पुरूष-विभागयोग 397
चौदहवाँ गुणत्रयविभागयोग 429
पन्द्रहवाँ पुरूषोत्तमयोग 453
सोलहवाँ दैवासुरसम्पदयोग 453
सत्रहवाँ श्रद्धात्रयविभागयोग 485
अठारहवाँ मोक्षयोग 501
  1. गीता 1/30

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः