श्रीमद्भगवद्गीता -विश्वनाथ चक्रवर्त्ती पृ. 177

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श्रीमद्भगवद्गीता -विश्वनाथ चक्रवर्त्ती
पंचम अध्याय

ज्ञानी और योगी निष्काम कर्म द्वारा जीवात्मा और परमात्मा का ज्ञान प्राप्त कर मुक्त होते हैं-यही इस अध्याय का तात्पर्य है। श्रीमद्भगवद्गीता के पंचम अध्याय की साधुजनसम्मता भक्तानन्ददायिनी सारार्थवर्षिणी टीका समाप्त। श्रीमद्भगवद्गीता के पंचम अध्याय की सारार्थवर्षिणी टीका का हिन्दी अनुवाद समाप्त।

सारार्थ वर्षिणी प्रकाशिका वृत्ति-

निष्काम-कर्मयोगी भी भक्ति से उदित परमात्म-ज्ञान के द्वारा मोक्ष प्राप्त करते हैं। यज्ञ और तपस्या के समय भक्तिपूर्वक अर्पित द्रव्यों के भोक्ता भगवान् ही हैं। वे ही योगियों के उपास्य अन्तर्यामी पुरुष, सर्वभूतों के सुहृद और सर्वलोक महेश्वर हैं-

‘तमीश्वराणां परमं महेश्वरं तं देवतानां परमञ्च दैवतम्।
पतिं पतीनां परमं परस्ताद् विदाम देवं भुवनेशमीड्यम्।।’[1]

“पूर्व के चार अध्यायों को श्रवणकर यह संशय होता है कि यदि कर्मयोग के अन्त में मोक्ष प्राप्त हुआ, तो ज्ञानयोग का स्थल कहाँ है एवं ज्ञानयोग का आकार क्या है? इसी संशय को दूर करने के लिए इस अध्याय के उपदेशसमूह कहे गये हैं। ज्ञानयोग अर्थात् सांख्ययोग और कर्मयोग पृथक् नहीं हैं। इन दोनों का चरम स्थान ‘एक’ अर्थात् भक्ति है। कर्मयोग की प्रथम अवस्था में कर्मप्रधान ज्ञान और शेष अवस्था (ज्ञानयोग) में ज्ञानप्रधान कर्म होता है। जीव स्वभावतः शुद्ध चिन्मय है। परन्तु माया को भोगने की वासना से उसने जड़बद्ध होकर क्रमशः जड़ के साथ्ज्ञ एकतारूपी अधोगति को प्राप्त किया है। जबकि यह जड़ शरीर है, तब तक जड़ीय कर्म अनिवार्य हैं। चित्त-चेष्टा ही मोचन का एकमात्र उपाय है। अतः जड़देह यात्रा में शुद्ध चित्-चेष्टा ही मोचन का एकमात्र उपाय है।

अतः जड़देह यात्रा में शुद्ध चित्-चेष्टा जितनी प्रबल होती है, कर्म-प्रधानता उतनी क्षीण होती है। समदर्शन, विराग, चित्-चेष्टा का अभ्यास, जड़ीय काम-क्रोध आदि का जय, संशयक्षय आदि साधन करते-करते ब्रह्मनिर्वाण अर्थात् जड़-निवृत्तिपूर्वक ब्रह्मसुख-संस्पर्श स्वयं उपस्थित होता है। कर्मयोग के साथ देहयात्रा-निर्वाहपूर्वक यम, नियम, आसन, प्रत्याहार, प्राणायाम, ध्यान, धारणा और समाधिरूप अष्टांगयोग का साधन करते-करते भक्त का संग प्राप्त कर क्रमशः भगद्भक्ति-सुख का उदय होता है। यही ‘मुक्तिपूर्विका शान्ति’ है। उस समय शुद्ध भजन-प्रवृत्ति ही जीव की स्वमहिमा प्रकाश करती है।”-श्रीभक्तिविनोद ठाकुर।।29।।

श्रीमद्भक्तिवेदान्त नारायणकृत श्रीमद्भगवद्गीता के पंचम अध्याय की सारार्थवर्षिणी-प्रकाशिका-वृत्ति समाप्त।
पंचम अध्याय समाप्त
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्वे. उ. 6/7

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श्रीमद्भगवद्गीता -विश्वनाथ चक्रवर्त्ती
अध्याय नाम पृष्ठ संख्या
पहला सैन्यदर्शन 1
दूसरा सांख्यायोग 28
तीसरा कर्मयोग 89
चौथा ज्ञानयोग 123
पाँचवाँ कर्मसंन्यासयोग 159
छठा ध्यानयोग 159
सातवाँ विज्ञानयोग 207
आठवाँ तारकब्रह्मयोग 236
नवाँ राजगुह्मयोग 254
दसवाँ विभूतियोग 303
ग्यारहवाँ विश्वरूपदर्शनयोग 332
बारहवाँ भक्तियोग 368
तेरहवाँ प्रकृति-पुरूष-विभागयोग 397
चौदहवाँ गुणत्रयविभागयोग 429
पन्द्रहवाँ पुरूषोत्तमयोग 453
सोलहवाँ दैवासुरसम्पदयोग 453
सत्रहवाँ श्रद्धात्रयविभागयोग 485
अठारहवाँ मोक्षयोग 501

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