व्यास आज्ञा से विधवा क्षत्राणियों का अपने पतियों के लोक जाना

महाभारत आश्रमवासिक पर्व में पुत्रदर्शन पर्व के अंतर्गत अध्याय 33 में व्यास आज्ञा से विधवा क्षत्राणियों का अपने पतियों के लोक जाने का वर्णन हुआ है।[1]

विधवा क्षत्राणियों का पतियों के लोक जाना

प्रजानाथ! वहाँ वे सभी साध्वी स्त्रियाँ मनुष्य-शरीर से छुटकारा पाकर अपने -अपने पति के साथ जा मिलीं। इस प्रकार क्रमशः वे सभी शीलवती पतिव्रता क्षत्राणियाँ इस शरीर से मुक्त हो पतिलोक को चली गयीं। जैसे उनके पति थे, उसी प्रकार वे भी दिव्य रूप से सम्पन्न हो गयीं। दिव्य आभूषण उनके अंगों की शोभा बढ़ाने लगे तथा उन्होंने दिव्य माला और दिव्य वस्त्र धारण कर लिये। शील और सद्गुण से सम्पन्न हुई वे सभी क्षत्रिय-बालाएँ समस्त सद्गुणों से अलंकृत हो विमान पर बैठकर अपने-अपने योग्य स्थान को चली गयीं। उनका सारा कष्ट दूर हो गया। उस समय जिसके-जिसके मन में जो-जो कामना उत्पन्न हुई, धर्मवत्सल वरदायक भगवान व्यास ने वह सब पूर्ण की। संग्राम मरे हुए राजाओं के पुनरागमन का वृत्तान्त सुनकर भिन्न-भिन्न देश के मनुष्यों को बड़ा आश्चर्य और आनन्द हुआ।[1]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 33 श्लोक 22-31

सम्बंधित लेख

महाभारत आश्रमवासिक पर्व में उल्लेखित कथाएँ


आश्रमवास पर्व

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पुत्रदर्शन पर्व

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