धृतराष्ट्र द्वारा राजनीति का उपदेश

महाभारत आश्रमवासिक पर्व में आश्रमवास पर्व के अंतर्गत छठवें अध्याय में वैशम्पायन जी ने धृतराष्ट्र द्वारा राजनीति का उपदेश देने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

धृतराष्ट्र द्वारा राजनीति का उपदेश

धृतराष्ट्र ने कहा- भरतनन्दन! तुम्हें शत्रुओं के अपने उदासील राजाओं के तथा मध्यस्थ पुरुषों के मण्डलों का ज्ञान रखना चाहिये। शत्रुसूदन! तुम्हें चार प्रकार के शत्रुओं के और छः प्रकार के आततायियों के भेदों को एवं मित्र और शत्रु के मित्र को भी पहचानना चाहिये। कुरुश्रेष्ठ! अमात्य (मन्त्री), जनपद (देश), नाना प्रकार के दुर्ग और सेना- इन पर शत्रुओं का यथेष्ट लक्ष्य रहता है (अतः इनकी रक्षा के लिये सदा सावधान रहना चाहिये)। प्रभो! कुन्तीनन्दन! उपर्युक्त बारह प्रकार के मनुष्य राजाओं के ही मुख्य विषय हैं। मन्त्री के अधीन रहने वाले कृषि आदि साठ[2] गुण और पूर्वोक्त बारह प्रकार के मनुष्य- इन सबको नीतिज्ञ आचार्यों ने ‘मण्डल’ नाम दिया है। युधिष्ठिर! तुम इस मण्डल को अच्छी तरह जानो; क्योंकि राज्य की रक्षा के संधि विग्रह आदि छः उपायों का उचित उपभोग इन्हीं के अधीन है। कुरुश्रेष्ठ! राजा को चाहिये कि वह अपनी वृद्धि, क्षय और स्थिति का सदा ही ज्ञान रखे। महाबाहो! पहले राजप्रधान बारह और मन्त्रिप्रधान साठ- इन बहत्तर का ज्ञान प्राप्त करके संधि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधी भाव और समाश्रय- इन छः गुणों का यथावसर उपयोग किया जाता है। कुन्तीनन्दन! जब अपना पक्ष बलवान तथा शत्रु का पक्ष निर्बल जान पड़े, उस समय शत्रु के साथ युद्ध छेड़कर विपक्षी राजा को जीतने का प्रयत्न करना चाहिये। परंतु जब शत्रु पक्ष प्रबल और अपना ही पक्ष दुर्बल हो, उस समय क्षीणशक्ति विद्वान पुरुष शत्रुओं के साथ संधि कर ले।

भारत! राजा को सदैव द्रव्यों का महान संग्रह करते रहना चाहिये। जब वह शीघ्र ही शत्रु पर आक्रमण करने में समर्थ हो, उस समय उसका जो कर्तव्य हो, उसे वह स्थिरतापूर्वक भलीभाँति विचार ले। भारत! यदि अपनी विपरीत अवस्था हो तो शत्रु को कम उपजाऊ भूमि, थोड़ा सा सोना और अधिक मात्रा में जस्ता पीतल आदि धातु तथा दुर्बल मित्र एवं सेना देकर उसके साथ संधि करे। यदि शत्रु की विपरीत दशा हो और वह संधि के लिये प्रार्थना करे तो संधि विशारद पुरुष उससे उपजाऊ भूमि, सोना चाँदी आदि धातु तथा बलवान मित्र एवं सेना लेकर उसके साथ संधि करे अथवा भरतश्रेष्ठ! प्रतिद्वन्द्वी राजा के राजकुमार को ही अपने यहाँ जमानत के तौर पर रखने की चेष्टा करनी चाहिये। इसके विपरीत बर्ताव करना अच्छा नहीं है। बेटा! यदि कोई आपत्ति आ जाय तो उचित उपाय और मन्त्रणा के ज्ञाता तुम जैसे राजा को उससे छूटने का प्रयत्न करना चाहिये। राजेन्द्र! प्रजाजनों के भीतर जो दीन दरिद्र (अन्ध अधिर आदि) मनुष्य हों, उनका भी राजा आदर करे। महाबली राजा अपने शत्रु के विपरीत क्रमशः अथवा एक साथ सारा उद्योग आरम्भ कर दे। वह उसे पीड़ा दे। उसकी गति अवरुद्ध करे और उसका खजाना नष्ट कर दे। अपने राज्य की रक्षा करने वाले राजा को यत्नपूर्वक शत्रुओं के साथ उपर्युक्त बर्ताव करना चाहिये; परंतु अपनी वृद्धि चाहने वाले नरेश को शरण में आये हुए सामन्त का वध कदापि नहीं करना चाहिये।[1]

कुन्तीकुमार! जो समूची पृथ्वी पर विजय पाना चहता हो, वह तो कदापि उस (सामन्त) की हिंसा न करे। तुम अपने मन्त्रियों सहित सदा शत्रुगणों में फूट डालने की इच्छा रखना। अच्छे पुरुषों से मेलजोल बढ़ाये और दुष्टों को कैद करके उन्हें दण्ड दे। महाबली नरेश को दुर्बल शत्रु के पीछे सदा नहीं पड़े रहना चाहिये। राजसिंह! तुम्हें बेंत की सी वृत्ति (नम्रता) का आश्रय लेकर रहना चाहिये। यदि किसी दुर्बल राजा पर बलवान राजा आक्रमण करे तो क्रमशः साम आदि उपायों द्वारा उस बलवान राजा को लौटाने का प्रयत्न करना चाहिये। यदि अपने में युद्ध की शक्ति न हो तो मन्त्रियों के साथ उस आक्रमणकारी राजा की शरण में जाय तथा कोश, पुरवासी मनुष्य, दण्ड शक्ति एवं अन्य जो प्रिय कार्य हों, उन सबको अर्पित करके उस प्रतिद्वन्द्वी को लौटाने की चेष्टा करे। यदि किसी भी उपाय से संधि न हो तो मुख्य साधन को लेकर विपक्षी पर युद्ध के लिये टूट पड़े। इस क्रम से शरीर चला जाय तो भी वीर पुरुष की मुक्ति ही होती है। केवल शरीर दे देना ही उसका मुख्य साधन है।[3]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 6 श्लोक 1-15
  2. कृषि आदि आठ सन्धान कर्म हैं। बाल आदि बीस असन्धेय हैं। नासित्कता आदि चौदह दोष है और मन्त्र आदि अठारह तीर्थ हैं। उन सबका विस्तारपूर्वक वर्णन पहले आ चुका है।
  3. महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 6 श्लोक 16-20

सम्बंधित लेख

महाभारत आश्रमवासिक पर्व में उल्लेखित कथाएँ


आश्रमवास पर्व

युधिष्ठिर तथा कुंती द्वारा धृतराष्ट्र और गांधारी की सेवा | पांडवों का धृतराष्ट्र और गांधारी के अनुकूल बर्ताव | धृतराष्ट्र का गांधारी के साथ वन जाने हेतु उद्योग | धृतराष्ट्र का वन जाने हेतु युधिष्ठिर से अनुमति लेने का अनुरोध | युधिष्ठिर और कुंती आदि का दुखी होना | युधिष्ठिर का धृतराष्ट्र को वन जाने हेतु अनुमति देना | धृतराष्ट्र द्वारा युधिष्ठिर को राजनीति का उपदेश | धृतराष्ट्र द्वारा राजनीति का उपदेश | युधिष्ठिर को धृतराष्ट्र द्वारा राजनीति का उपदेश | धृतराष्ट्र का कुरुजांगल की प्रजा से वन जाने हेतु आज्ञा माँगना | प्रजाजनों से धृतराष्ट्र द्वारा क्षमा प्रार्थना करना | साम्ब ब्राह्मण का धृतराष्ट्र को सान्त्वनापूर्ण उत्तर देना | धृतराष्ट्र का युधिष्ठिर से श्राद्ध के लिए धन मांगना | धृतराष्ट्र के धन मांगने पर अर्जुन की सहमति और भीम का विरोध | युधिष्ठिर का धृतराष्ट्र को यथेष्ट धन देने की स्वीकृति देना | विदुर का धृतराष्ट्र को युधिष्ठिर का उदारतापूर्ण उत्तर सुनाना | धृतराष्ट्र द्वारा मृत व्यक्तियों के लिए श्राद्ध एवं दान-यज्ञ का अनुष्ठान | गांधारी सहित धृतराष्ट्र का वन प्रस्थान | पांडवों के अनुरोध पर भी कुंती का वन जाने का निश्चय | कुंती द्वारा पांडवों के अनुरोध का उत्तर | पांडवों का स्त्रियों सहित निराश लौटना | कुंती सहित गांधारी व धृतराष्ट्र का गंगातट पर निवास | धृतराष्ट्र आदि का गंगातट से कुरुक्षेत्र गमन | धृतराष्ट्र आदि का शतयूप के आश्रम पर निवास | नारद का धृतराष्ट्र की तपस्या विषयक श्रद्धा को बढ़ाना | नारद द्वारा धृतराष्ट्र को मिलने वाली गति का वर्णन | धृतराष्ट्र आदि के लिए पांडवों तथा पुरवासियों की चिंता | कुंती की चिंता से युधिष्ठिर का वन जाने का विचार | युधिष्ठिर के साथ सहदेव और द्रौपदी का वन जाने का उत्साह | युधिष्ठिर का सेना सहित वन प्रस्थान | पांडवों का सेना सहित कुरुक्षेत्र पहुँचना | पांडवों तथा पुरवासियों का धृतराष्ट्र आदि के दर्शन करना | संजय द्वारा ऋषियों को पांडवों सहित समस्त स्त्रियों का परिचय देना | धृतराष्ट्र और युधिष्ठिर की बातचीत | विदुर का युधिष्ठिर के शरीर में प्रवेश | युधिष्ठिर आदि का ऋषियों के आश्रम देखना | युधिष्ठिर का कलश आदि बाँटना और धृतराष्ट्र के पास बैठना | युधिष्ठिर आदि के पास ऋषियों सहित व्यास का आगमन | व्यास का धृतराष्ट्र से कुशल-क्षेम पूछना | व्यास का धृतराष्ट्र से विदुर और युधिष्ठिर की धर्मरूपता का प्रतिपादन

पुत्रदर्शन पर्व

धृतराष्ट्र का मृत बान्धवों के शोक से दुखी होना | गांधारी और कुंती का व्यास से मृत पुत्रों के दर्शन का अनुरोध | कुंती का कर्ण के जन्म का गुप्त रहस्य बताने का वर्णन | व्यास द्वारा कुंती को सांत्वना देना | व्यास द्वारा धृतराष्ट्र आदि के पूर्वजन्म का परिचय | व्यास के कहने पर सब लोगों का गंगा तटपर जान | व्यास के प्रभाव से कौरव-पाण्डवों का गंगा नदी से प्रकट होना | परलोक से आये व्यक्तियों का रागद्वेषरहित होकर मिलना | व्यास आज्ञा से विधवा क्षत्राणियों का अपने पतियों के लोक जाना | पुत्रदर्शन पर्व के श्रवण की महिमा | वैशम्पायन द्वारा जनमेजय की शंका का समाधान | व्यास की कृपा से जनमेजय को अपने पिता के दर्शन | व्यास की आज्ञा से धृतराष्ट्र आदि पाण्डवों को विदा करना | पाण्डवों का सदलबल हस्तिनापुर में आना

नारदागमन पर्व

नारद का युधिष्ठिर को धृतराष्ट्र आदि के दावानल में दग्ध होने का समाचार देना | युधिष्ठिर का धृतराष्ट्र आदि की मृत्यु पर शोक करना | धृतराष्ट्र आदि की मृत्यु पर युधिष्ठिर एवं अन्य पांडवों का विलाप | युधिष्ठिर द्वारा धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती की हड्डियों को गंगा में प्रवाहित करना

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः