धृतराष्ट्र आदि का शतयूप के आश्रम पर निवास

महाभारत आश्रमवासिक पर्व में आश्रमवास पर्व के अंतर्गत 19वें अध्याय में वैशम्पायन जी ने कुरुक्षेत्र पहुँचकर धृतराष्ट्र आदि का शतयूप के आश्रम पर निवास करने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

धृतराष्ट्र आदि का शतयूप के आश्रम पर निवास करना

वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! धृतराष्ट्र आदि सभी लोग कुरुक्षेत्र पहुँचे। वहाँ बुद्धिमान भूपाल एक आश्रम पर जाकर वहाँ के मनीषी राजर्षि शतयूप से मिले। वे परंतप राजा शतयूप कभी केकय देश के महाराज थे। अपने पुत्र को राजसिंहासन पर बिठाकर वन में चले आये थे। राजा धृतराष्ट्र उन्हें साथ लेकर व्यास-आश्रम पर गये। वहाँ कुरुश्रेष्ठ राजा धृतराष्ट्र ने विधिपूर्वक व्यास जी की पूजा की। तत्पश्चात् उन्हीं से वनवास की दीक्षा लेकर कौरवनन्दन राजा धृतराष्ट्र पूर्वोक्त शतयूप के आश्रम में लौट आये और वहीं निवास करने लगे। महाराज! वहाँ परम बुद्धिमान राजा शतयूप ने व्यास जी की आज्ञा से धृतराष्ट्र को वन में रहने की सम्पूर्ण विधि बतला दी। राजन! इस प्रकार महामनस्वी राजा धृतराष्ट्र ने अपने आपको तथा साथ आये हुए लोगों को भी तपस्या में लगा दिया।

महाराज! इसी प्रकार वल्कल और मृगचर्म धारण करने वाली गान्धारी देवी भी कुन्ती के साथ रहकर धृतराष्ट्र के समान ही व्रत का पालन करने लगीं। नरेश्वर! वे दोनों नारियाँ इन्द्रियों को अपने अधीन करके मन, वाणी, कर्म तथा नेत्रों के द्वारा भी उत्तम तपस्या में संलग्न हो गयीं। राजा धृतराष्ट्र के शरीर का मांस सूख गया। वे अस्थिचर्मावशिष्ट होकर मस्तक पर जटा और शरीर पर मृगछाला एवं वल्कल धारण किये महर्षियों की भाँति तीव्र तपस्या में प्रवृत्त हो गये। उनके चित्त का सम्पूर्ण मोह दूर हो गया था। धर्म और अर्थ के ज्ञाता तथा उत्तम बुद्धि वाले विदुर जी भी संजय सहित वल्कल और चीरवस्त्र धारण किये गान्धारी और धृतराष्ट्र की सेवा करने लगे। वे मन को वश में करके अपने दुर्बल शरीर से घोर तपस्या में संलग्न रहते थे।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 19 श्लोक 1-18

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महाभारत आश्रमवासिक पर्व में उल्लेखित कथाएँ


आश्रमवास पर्व

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