विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टम अध्याय‘पूज्य महाराज जी’-“मेरा रूप देखें और श्रद्धानुसार कोई भी दो-ढाई अक्षर का नाम-ऊँ, ‘राम’, ‘शिव’ में से कोई एक लें, उसका चिन्तन करें और उसी के अर्थस्वरूप इष्ट के स्वरूप का ध्यान करें।” ध्यान सद्गुरु का ही किया जाता है। आप राम, कृष्ण अथवा ‘वीतराग विषयं वा चित्तम्।’-वीतराग महात्मओं अथवा ‘यथाभिमतध्यानाद्धा।’ (पातंजल योग., 10/37, 39) अभिमत अर्थात् योग के अभिमत, अनुकूल किसी का भी स्वरूप पकड़े, वे अनुभव में आपको मिलेंगे और आपके समकालीन किसी सद्गुरु की ओर बढ़ा देंगे, जिनके मार्गदर्शन से आप शनैः-शनैः प्रकृति के क्षेत्र से पार होते जायेंगे। मैं भी प्रारम्भ में एक देवता (कृष्ण के विराट् रूप) के चित्र का ध्यान करता था; किन्तु पूज्य महाराज जी के अनुभवी प्रवेश के साथ वह शान्त हो गया। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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