यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 599

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

त्रयोदश अध्याय


गीता के आरम्भ में ही धृतराष्ट्र का प्रश्न है-संजय! धर्मक्षेत्र में तथा कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे और पाण्डुपुत्रों ने क्या किया? किन्तु अभी तक यह नहीं बातया गया कि वह क्षेत्र कहाँ? जिन महापुरुष ने जिस क्षेत्र में युद्ध बताया, स्वयं ही उस क्षेत्र का प्रस्तुत अध्याय में निर्णय देते हैं कि वह क्षेत्र वस्तुतः है कहाँ?

श्रीभगवानुवाच
इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते।
एतद्यो वेत्ति तं प्राहुः क्षेत्रज्ञ इति तद्विदः।।1।।

कौन्तेय! यह शरीर एक क्षेत्र है और इसको जो भली प्रकार जानता है, वह क्षेत्रज्ञ है। वह उसमें फँसा नहीं है बल्कि उसका संचालक है। ऐसा उस तत्त्व को विदित करनेवाले महापुरुषों ने कहा है।

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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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