विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दत्रयोदश अध्याय
श्रीभगवानुवाच कौन्तेय! यह शरीर एक क्षेत्र है और इसको जो भली प्रकार जानता है, वह क्षेत्रज्ञ है। वह उसमें फँसा नहीं है बल्कि उसका संचालक है। ऐसा उस तत्त्व को विदित करनेवाले महापुरुषों ने कहा है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
सम्बंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ सं. |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज