विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टम अध्यायप्रारम्भिक साधक नाम तो जपते हैं; किन्तु महापुरुष के स्वरूप का ध्यान करने में हिचकते हैं। वे अपनी अर्जित मान्यताओं का पूर्वाग्रह छोड़ नहीं पाते। वे किसी अन्य देवता का ध्यान करते हैं, जिसका योगेश्वर श्रीकृष्ण ने निषेध किया है। अतः पूर्ण समर्पण के साथ किसी अनुभवी महापुरुष की शरण लें। पुण्य-पुरुषार्थ सबल होते ही कुतर्कों का शमन और यथार्थ क्रिया में प्रवेश मिल जायेगा। योगेश्वर श्रीकृष्ण के अनुसार इस प्रकार ‘ऊँ’ के जप और परमात्वस्वरूप सद्गुरु के स्वरूप का निरन्तर स्मरण करने से मन का निरोध और विलय हो जाता है और उसी क्षण शरीर के सम्बन्ध का त्याग हो जाता है। केवल मरने से शरीर पीछा नहीं छोडता।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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