विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टम अध्यायभगवान् शिव ने ‘राम’ शब्द के जपने पर बल दिया। ‘रमन्ते योगिनो यस्मिन् स रामः।’ ‘रा और म के बीच में कबिरा रहा लुकाय।’ रा और म इन दोनों अक्षरों के अन्तराल में कबीर अपने मन को रोकने में सक्षम हो गये। श्रीकृष्ण ओम् पर बल देते हैं। ओ अहं स ओम् अर्थात् वह सत्ता मेरे भीतर है, कहीं बाहर न ढूँढ़ने लगे। यह ओम् भी उस परम सत्ता का परिचय देकर शान्त हो जाता है। वास्तव में उन प्रभु के अनन्त नाम हैं; किन्तु जप के लिये वही नाम सार्थक है जो छोटा हो, श्वास में ढल जाय और एक परमात्मा का ही बोध कराता हो। उससे भिन्न अनेक देवी-देवताओं की अविवेकपूर्ण कल्पना में लडझकर लक्ष्य से दृष्टि न हटा दें।
|
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
सम्बंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ सं. |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज