विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टम अध्यायओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्ममरन्। जो पुरुष ‘ओम इति’- ओम् इतना ही, जो अक्षय ब्रह्म का परिचायक है, इसका जप तथा मेरा स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग कर जाता है, वह पुरुष परमगति को प्राप्त होता है। श्रीकृष्ण एक योगेश्वर, परमतत्त्व में स्थित महापुरुष, सद्गुरु थे। योगेश्वर श्रीकृष्ण ने बताया कि ‘ओम्’ अक्षय ब्रह्म का परिचायक है, तू इसका जन कर और ध्यान मेरा कर। प्राप्ति के हर महापुरुष का नाम वही होता है जिसे वह प्राप्त है, जिसमें वह विलय है इसलिये नाम ओम् बताया और रूप अपना। योगेश्वर ने ‘कृष्ण-कृष्ण’ जपने का निर्देश नहीं दिया लेकिन कालान्तर में भावुकों ने उनका भी नाम जपना आरम्भ कर दिया और अपनी श्रद्धा के अनुसार उसका फल भी पाते हैं, जैसा कि, मनुष्य की श्रद्धा जहाँ टिक जाती है वहाँ मैं ही उसकी श्रद्धा को पुष्ट करता तथा मैं ही फल का विधान भी करता हूँ।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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