विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वितीय अध्याय
मोरें प्रौढ़ तनय सम ग्यानी। बालक सुत सम दास अमानी। मेरे दो प्रकार के भजने वाले हैं- एक ज्ञानमार्गी, दूसरा भक्तिमार्गी। निष्काम कर्ममार्गी या भक्तिमार्गी शरणागत होकर मेरा आश्रय लेकर चलता है। ज्ञानयोगी अपनी शक्ति सामने रखकर, अपने हानि-लाभ का विचार कर अपने भरोसे चलता है, जबकि दोनों के शत्रु एक ही हैं। ज्ञानमार्गी को काम, क्रोधादि शत्रुओं पर विजय पाना है और निष्काम कर्मयोगी को भी इन्हीं से युद्ध करना है। कामनाओं का त्याग दोनों करते हैं और दोनों मार्गों में किया जाने वाला कर्म भी एक ही है। “इस कर्म के परिणाम में परमशान्ति को प्राप्त हो जाओगे।”-लेकिन यह नहीं बताया कि कर्म है क्या? अब आपके भी समक्ष ‘कर्म’ एक प्रश्न है।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ रामचरितमानस, 3/42-8-9
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