विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वितीय अध्याय
विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः। जो पुरुष सम्पूर्ण कामनाओं को त्यागकर ‘निर्ममः’-मैं और मेरे के भाव तथा अहंकार और स्पृहा से रहित हुआ बरतता है, वह उस परमशान्ति को प्राप्त होता है जिसके बाद कुछ भी पाना शेष नहीं रह जाता। एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति। पार्थ! उपर्युक्त स्थिति ब्रह्म को प्राप्त हुए पुरुष की स्थिति है। समुद्रवत् उन महापुरुष में विषय नदियों की तरह समा जाते हैं। वे पूर्ण संयमी और प्रत्यक्षतः परमात्मदर्शी हैं। केवल ‘अहं ब्रह्मास्मि’ पढ़ लेने या रट लेने से यह स्थिति नहीं मिलती। साधन करके ही इस ब्रह्म की स्थिति को पाया जाता है। ऐसा महापुरुष ब्रह्मनिष्ठा में स्थित रहते हुए शरीर के अन्तकाल में भी ब्रह्मानन्द को ही प्राप्त होता है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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