विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वितीय अध्याय
इसके साथ ही भगवत्ता की स्थिति आ गयी। अब संस्कार पड़े भी तो कहाँ? इस पर एक ही श्लोक में श्रीकृष्ण ने अर्जुन के कई प्रश्नों का समाधान कर दिया। उसकी जिज्ञासा थी कि स्थितप्रज्ञ महापुरुष के लक्षण क्या हैं? वह कैसे बोलता है, कैसे बैठता है, कैसे चलता है? श्रीकृष्ण ने एक ही शब्द में उत्तर दिया कि वे समुद्रवत् होते हैं। उनके लिये विधि-निषेध नहीं होता कि ऐेसे बैठो और ऐसे चलो। वे ही परमशान्ति को प्राप्त होते हैं; क्योंकि वे संयमी हैं। भोगों की कामनावाला शान्ति नहीं पाता। इसी पर पुनः बल देते हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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