भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 94

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

Prev.png

पितामह का उपदेश

एक दिन वह वन में घूम रहा था कि बड़े जोर से आँधी और बिजली चमकने लगी। पानी से पृथ्वी भर गयी, पशु-पक्षियों के लिये भी कहीं आश्रय नहीं था। वह बहेलिया स्वयं भी जाड़े के मारे ठिठुर रहा था। न उसे ठहरने को कोई स्थान मिल रहा था और न उसमें कहीं जाने की शक्ति ही थी। उसी समय जाड़े से व्याकुल एक कबूतरी उसे दीख पड़ी। वह बहेलिया स्वयं तो दु:खी था ही, परंतु उस अवस्था में भी उसने कबूतरी को पकड़ ही लिया। उस कबूतरी को पिंजरे में बंद कर दिया। स्वयं दु:खी होने पर भी उसे कबूतरी को दु:ख देने में संकोच नहीं हुआ।

उसी समय बहेलिये ने एक पेड़ देखा, बड़ा सुन्दर पेड़ था। मानो ब्रह्मा ने परोपकार करने के लिये ही उसकी सृष्टि की हो। आकाश निर्मल हो गया, नक्षत्र दिखायी देने लगे। बहेलिया ने आकर उसी पेड़ की शरण ली। वह पत्ते बिछाकर एक पत्थर पर सिर रखकर लेट गया। वह वृक्ष कबूतरी का निवास स्थान था। उसका पति कबूतर उसी पर रहता था। समय पर कबूतरी के न आने से वह बड़ा विलाप कर रहा था। अपने पति का विलाप सुनकर कबूतरी को बड़ा दु:ख हुआ, साथ ही अपने सौभाग्य का गर्व भी। वह सोचने लगी, मेरे पति मुझसे इतना प्रसन्न रहते हैं तो इससे बढ़कर मेरे लिये और प्रसन्नता की बात क्या होगी? उसने पिंजरे के अंदर से ही अपने पति को पुकारकर कहा- 'स्वामी! इस समय तुम्हारे हित की बात यही है कि इस भूखे-प्यासे और जाड़े से ठिठुरते हुए बहेलिये की रक्षा और सत्कार करो। यह तुम्हारे घर आया है न, हम पक्षी होने के कारण निर्बल अवश्य हैं, परंतु तुम्हारे जैसे आत्मतत्व के ज्ञाता को शरणागत प्राणी की रक्षा करनी ही चाहिये। मेेरे बदले में तुम्हें दूसरी स्त्री मिल सकती है, परंतु इस प्रकार अतिथि-सत्कार का अवसर प्राप्त होगा या नहीं, इसमें संदेह है।'

अपनी स्त्री के वचन सुनकर कबूतर को बड़ी प्रसन्नता हुई। वह आदर के साथ बहेलिये से कहने लगा-'भाई साहब! आप अपने ही घर में हैं, कोई चिन्ता न करें। आप मेरे अतिथि हैं, आपकी सेवा मेरा कर्तव्य है।' वृक्ष अपने काटने वाले को भी छाया देता है। घर आने पर अपने शत्रु का भी सत्कार करना चाहिये। आप इस समय क्या चाहते हैं। मैं यथाशक्ति आपकी इच्छा पूरी करूँगा।' बहेलिये ने कहा-'इस समय तो मैं जाड़े से ठिठुर रहा हूँ, ठंड से बचने का कोई उपाय करो।' कबूतर ने सूखे पत्ते इकट्ठे किये। लुहार के यहाँ से आग लाकर जला दिया। बहेलिया आग तापने लगा। उसका जाड़ा छूट गया। अब वह कबूतर की ओर देखकर बोला कि 'मुझे भूख लगी है, कुछ खाने को चाहिये।'

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः