भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 71

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन

श्रीकृष्ण ने कहा- 'पितामह! तुम मेरे सच्चे भक्त हो। तुमने मेरी इच्छा पूर्ण करने के लिये अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी। तुम्हारी प्रतिज्ञा भीष्म प्रतिज्ञा के नाम से प्रसिद्ध है, तुमने अब तक जो प्रतिज्ञा की है वह कभी नहीं तोड़ी है। आज तुमने मेरे लिये अपनी प्रतिज्ञा का परित्याग करके अपनी सर्वोत्कृष्ट वस्तु मुझे दान की है। मैं तुम्हारा चिरकृतज्ञ-चिरऋणी रहूँगा। 'भगवान् मेरे चिरऋणी रहेंगे' यह सुनकर भीष्म विह्ल हो गये। वे बहुत देर तक भगवान् की कृपा के अनन्त समुद्र में डूबते-उतराते रहे। उन्होंने होश आने पर कहा-'अच्छा भगवन्! पाण्डवों की तो रक्षा हुई, परंतु अब हमारी-तुम्हारी कल बनेगी। जैसे मैंने प्रतिज्ञा तोड़ी है, वैसे ही कल तुम्हारी प्रतिज्ञा भी टूटेगी। कल तुम्हें भी अपने हाथों में शस्त्र लेना पड़ेगा।' भगवान् ने मौन से ही स्वीकृति दी और द्रौपदी के साथ लौट आये।[1] भीष्म मन-ही-मन गाने लगे-

आज जो हरिहि न शस्त्र गहाऊँ।
तौ लाजौं गंगाजननी को सांतनु सुत न कहाऊँ।।
स्यंदन खंडि महारथ खंडौं कपिध्वज सहित डुलाऊँ।
इती न करौं सपथ मोहि हरि की, क्षत्रिय गतिहि न पाऊँ।।
पांडव दल सनमुख ह्वै धाऊँ, सरिता रुधिर बहाऊँ।
सूरदास रनभूमि विजय बिन, जियत न पीठ दिखाऊँ।।

नवें दिन प्रात:काल नित्य-कृत्य से निवृत्त होकर सभी योद्धा रणभूमि में आये। उस दिन पहले के दिनों से भी भयंकर संग्राम हुआ। कौन-कौन से वीर किन-किन से लड़े और किन्होंने किनका वध किया और किसने किसको कितने बाण मारे, यह सब जानना हो तो महाभारत का भीष्मपर्व ही पढ़ना चाहिये। उस समय पाण्डवों की सेना में भीष्म दावानल की भाँति प्रज्वलित हो रहे थे। बहुत-से रथ अग्नि के कुण्ड थे, धनुष उनकी ज्वाला थी; तलवार, गदा, शक्ति आदि ईंधन थे, बाण चिनगारी थे। भयंकर नर-संहार हो रहा था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इसी अवसर पर दुर्योधन का मुकुट लेकर उन पाँचों बाणों के लेने के लिये अर्जुन के आने की बात भी सुनी जाती है।

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भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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