भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 58

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

Prev.png

महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी

श्रीकृष्ण ने मुस्कुराकर लोगों को समझाया कि मैं इनका भाव समझ रहा हूँ। ये भीष्म, द्रोण, कृप आदि बड़े-बूढ़ों को नमस्कार करने और उनसे युद्ध करने की आज्ञा लेने जा रहे हैं।' गुरुजनों का सम्मान और आज्ञा पालन करने से ही मनुष्य विजयी होता है। सबका समाधान हो गया।

युधिष्ठिर के बारे में कौरवों के सैनिक तरह-तरह की बातें कर रहे थे। कोई कहता युधिष्ठिर डर गये हैं, कोई कहता उन्होंन कुल में कलंक लगा दिया, कोई कहता वे शरणार्थी होकर आ रहे हैं। युधिष्ठिर ने किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया। वे सीधे भीष्म पितामह के पास गये, उनके चरणों का स्पर्श किया और कहा कि 'पितामह! आज ऐसा प्रसंग आ पड़ा है कि विवश होकर हमें आपके साथ लडाई करनी पड़ेगी। आप हमें इसके लिये आज्ञा दीजिये और आशीर्वाद दीजिये।' भीष्म पितामह ने कहा- 'बेटा! तुम बड़े धर्मज्ञ हो। इस प्रकार मुझसे अनुमति माँगकर तुमने अपने धर्म के अनुसार कार्य किया है। यदि ऐसा न करते तो मैं तुम्हें पराजय का शाप दे देता। अब मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूँ। युद्ध में तुम्हारी विजय हो, तुम्हारी अभिलाषा पूरी हो। जाओ, मैं तुम्हें युद्ध करने की आज्ञा देता हूँ। युधिष्ठिर! तुम मुझसे और भी कुछ चाहते हो तो माँग लो। किसी प्रकार तुम्हारी हार नहीं हो सकती। राजन्! मैं क्या कहूँ? अपनी सफाई किस तरह से दूँ? यही समझो कि मनुष्य धन का दास है। धन किसी का दास नहीं है। मुझे धन से ही कौरवों ने अपने अधीन कर रखा है। इसी से मैं नपुंसकों की भाँति तुमसे कह रहा हूँ कि मेरा कुछ वश नहीं। कौरवों का धन और वृत्ति स्वीकार करके मैं उनके अधीन हो गया हूँ। युद्ध में सहायता के अतिरिक्त तुम मुझसे जो चाहो माँग लो, मैं सब कुछ दे सकता हूँ।

युधिष्ठिर ने कहा-'पितामह! यह आपकी महत्ता है, आप किस उद्देश्य से क्या कहते हैं, यह हम लोग क्या जान सकते हैं? आप दुर्योधन की ओर से युद्ध करते हैं, तो करें। आपका शरीर उनकी ओर रहे, परंतु आपका हृदय हमारे पक्ष में रहे और आप सर्वदा हमें हमारे हित की सलाह दिया करें, यही मैं आपसे माँगता हूँ।' भीष्म ने कहा-'मैं दुर्योधन की ओर से लडूँगा, तुम्हें क्या सलाह दे सकता हूँ यह बात स्पष्ट बताओ।' युधिष्ठिर बोले- 'पितामह! मैं आपसे अपने हित की यह सलाह चाहता हूँ कि आपको मैं युद्ध में कैसे जीत सकता हूँ।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः