भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 104

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग

पाण्डवों ने चिता तैयार की। भीष्म का शरीर जला दिया गया।। बस लोगों ने गंगाजल से भीष्म को जलांजलि दी। उस समय भगवती भागीरथी मूर्तिमान् होकर जल से बाहर निकल आयीं। वे शोक से व्याकुल होकर रो-रोकर भीष्म का गुणगान करने लगीं। वे कहने लगीं- 'मेरे पुत्र भीष्म सारी पृथ्वी में एक ही महापुरुष थे, उनका व्यवहार आदर्श था, उनकी बुद्धि विलक्षण थी, उनमें विनय आदि की अविचल प्रतिष्ठा थी। वे वृद्धों और गुरुजनों के सेवक थे। पिता और माता के भक्त थे। उनका ब्रहृमचर्य व्रत अलौकिक था, परशुराम भी उन्हें नहीं हरा सके। पृथ्वी में उनके समान पराक्रमी और कोई नहीं है। मेरे वही पराक्रमी पुत्र शिखण्डी के हाथों मारे गये, बड़े दु:ख की बात है। उनके वियोग में मेरा हृदय फट नहीं जाता। मेरा हृदय पत्थर का बना है।'

भगवान् श्रीकृष्ण और वेदव्यास उनके पास गये। उन्होंने कहा-'देवि! तुम शोक मत करो, तुम्हारे पुत्र भीष्म ने उत्तम गति प्राप्त की है। वे आठ वसुओं में से एक वसु थे। वे लोक के महान् कल्याणकारी हैं। वशिष्ठ के शाप से उनका जन्म हुआ था। उन्हें शिखण्डी ने नहीं अर्जुन ने मारा है। उन्हें इन्द्र भी नहीं मार सकते थे। उन्होंने अपनी इच्छा से ही शरीर-त्याग किया है।' उनके समझाने से भगवती भागीरथी का शोक बहुत कुछ दूर हो गया। वे अपने लोक को चली गयीं। सब लोग वहाँ से हस्तिनापुर चले आये।

यह सृष्टि भगवान् का लीला-विलास है। इसमें उनकी ओर से समय-समय पर धर्म की रक्षा-दीक्षा और आदर्श के लिये अनेकों महापुरुष आया करते हैं। उनमें भीष्म प्रधान हैं। उनके चरित्र से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। भगवान् श्रीकृष्ण हमारा हृदय शुद्ध करें कि हम उस महापुरुष का चरित्रगान करके उनकी ही जैसी भगवान् की अविचल भक्ति, कर्तव्यनिष्ठा और उत्तम ज्ञात प्राप्त कर सकें। भीष्म का जीवन पूर्ण जीवन है। उनका कर्म पूर्ण है। उनकी शक्ति पूर्ण है और उनका ज्ञान पूर्ण है। जहाँ पूर्णता है, वहाँ भगवान् हैं। जहाँ भगवान् हैं वहीं पूर्णता है। भीष्म का जीवन भगवन्मय है और भगवान् भीष्म के जीवन में ओत-प्रोत हैं। भीष्म के जीवन का स्मरण भगवान् का स्मरण है।

बोलो भक्त और उनके भगवान् की जय।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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