गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 317

गीता रस रत्नाकर -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज

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षष्ठम अध्याय

प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्माचारिव्रते स्थित: ।
मन: संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्पर: ॥[1]

प्रशान्तात्मा’- कभी मयूरासन किया, कभी सर्पासन किया, उष्ट्रासन किया और कभी गर्दभासन किया। यह जो जीव चौरासी लाख योनियों में रहता आया है, उन योनियों के संस्कार इसके मन में हैं। आसन चौरासी नहीं, चौरासी लाख हैं। महाराज! अगर स्कूल में मास्टर लोग किसी बच्चे को मुर्गा बना देते हैं तो वह घर पर आकर रोता है कि आज मास्टर ने मुर्गा बना दिया। लेकिन यहाँ तो जीव जान-बूझकर खुद ही मुर्गा बनता आ रहा है।

असल में पूर्व जन्म के जो संस्कार हैं, गीता उनको स्वीकार करती है। भगवान् कहते हैं कि ऐसा आसन बाँधकर बैठो; जिससे शरीर भी, मन भी, बुद्धि भी प्रशान्त हो। बुद्धि शुद्ध करने के लिए जो आसन होता है, वह व्यायामात्मक नहीं होता। आसन का फल हड्डी-मांस-चाम के शरीर का निर्माण नहीं, अंतःकरण का निर्माण है। आजकल एक बड़े भारी योगिराग हैं, जिनकी विलायत में बड़ी पूजा है। मैंने एक दिन उनको समझाना चाहा कि ‘योगः चित्तनिरोधः’ नहीं है, ‘चित्त-वृत्तिनिरोधः’ है चित्त के निरोध का नाम योग नहीं है, चित्त की वृत्तियों के निरोध का नाम योग है। योगीराजजी थोड़ी देर तो सुनते रहे, फिर हमसे बोले कि महाराज, हमको तो इतने दिन योग की क्लास चलाते हो गये, लेकिन आज से पहले चित्त और चित्तवृत्ति का भेद क्या होता है, यह मालूम नहीं था। यह हालत है आजकल के योगिराजों की! अरे भाई, हाथ को काटकर फेंक देने का नाम योग नहीं है, हाथ का जो हिलाना है, उनको बंद कर देने का नाम योग है। चित्त हाथ की तरह है और वृत्ति माने बर्ताव बरतन। चित्तवृत्ति निरोध का मतलब है कि चित्त की संड़सी से किसी विषय को ग्रहण मत करो। संड़ासी का संचालन उस समय बंद हो जाता है।

विगतभीः’- बैठे तो समाधि लगाने, योग करने, किन्तु डर लगता है कि कहीं साँप आकर काट न ले, कहीं शेर आकर निकल न जाये और कहीं दुश्मन आकर डंडा न मार दे। ऐसी स्थिति में समाधि कैसे लगेगी? इसलिए भय छोड़कर निर्भय होकर देखना चाहिए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 14॥

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गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. पहला अध्याय 1
2. दूसरा अध्याय 26
3. तीसरा अध्याय 149
4. चौथा अध्याय 204
5. पाँचवाँ अध्याय 256
6. छठवाँ अध्याय 299
7. सातवाँ अध्याय 350
8. आठवाँ अध्याय 384
9. नववाँ अध्याय 415
10. दसवाँ अध्याय 465
11. ग्यारहवाँ अध्याय 487
12. बारहवाँ अध्याय 505
13. तेरहवाँ अध्याय 531
14. चौदहवाँ अध्याय 563
15. पंद्रहवाँ अध्याय 587
16. सोलहवाँ अध्याय 606
17. सत्रहवाँ अध्याय 628
18. अठारहवाँ अध्याय 651
अंतिम पृष्ठ 723

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