गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 279

गीता रस रत्नाकर -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज

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पंचम अध्याय

सूर्योदय होने से मनुष्य की आँख के आगे जो अन्धेरा छाया हुआ है, वह मिट जाता है। सूर्य दुनिया में कुछ नहीं बनाता है, केवल अन्धेरा दूर कर देता है और जो है, वह दीखने लगता है। इसी प्रकार जब परमात्मा का ज्ञान उदय होता है, तब बुद्धि में अंधकार दूर कर देता है और जो असली चीज है, वह दीखने लगती है। सूर्य की तरह ज्ञान भी कुछ बनाता नहीं बिगाड़ता नहीं। प्रेम तो अप्रिय को भी प्रिय बना देता है। प्रेम निर्माता है। किन्तु ज्ञान निर्माता नहीं है, विधाता नहीं। वह केवल, जो जैसी चीज है, उसको वैसा ही दिखा देता है। यह शिव भी नहीं है, प्रलयंकर भी नहीं है। ज्ञान किसी को मारता नहीं, किसी को पालता नहीं, किसी को पैदा नहीं करता। ज्ञान केवल अन्धकार को मिटा देता है और जो चीज जैसी है वैसी दीखने लगती है। इसीलिए ज्ञान का फल अविद्या निवृत्ति मात्र ही है। यदि उत्पाद्य फल होगा तो वह भी नाशवान् हो जायेगा।

तद्बुद्ध्यः’ माने उसी परमार्थ में अपनी बुद्धि लगाओ। वही परब्रह्म, वही परमार्थ तत्व आत्मा है- ‘तदामानः’। उसी को आत्मा के रूप में देखो और तन्निष्ठाः’ उसी में अभिनिवेश करो। अरे साक्षात् अपरोक्ष अनुभव न हो, तब भी जिद कर लो कि हम तो ब्रह्म ही हैं। ‘अस्यते प्राप्यते ध्यानाद् नित्यात्मब्रह्म चिन्तनाः तत्परायणाः’- बस, वहीं पहुँचना है, उसके आगे और कुछ नहीं है।

देखो, शैवों ने इसको ‘अनष्ट महल’ कहा है। मैं आपको ‘अनष्ट महल’ का अर्थ सुनाता हूँ। ‘अनचक् अनहलं’ अर्थात् अच् प्रत्याहा हल प्रत्याहार दोनों से जितने शब्द बनते हैं, उनकी गति वहाँ तक नहीं है। फिर आप कहाँ पहुँचाना चाहते हैं? हम आपको ‘अनष्ट महल’ का अर्थ सुनाता हूँ। ‘अनष्टमहलम्’ में पहुँचाना चाहते हैं? यह ‘अनष्टक महल’ क्या होता है? अरे बाबा, कुछ तो रहस्य को रहस्य रहने दो! यह गुरुवाग्-गम्य है, बिना गुरु से सीखे इसका मतलब समझ में नहीं आ सकता।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. पहला अध्याय 1
2. दूसरा अध्याय 26
3. तीसरा अध्याय 149
4. चौथा अध्याय 204
5. पाँचवाँ अध्याय 256
6. छठवाँ अध्याय 299
7. सातवाँ अध्याय 350
8. आठवाँ अध्याय 384
9. नववाँ अध्याय 415
10. दसवाँ अध्याय 465
11. ग्यारहवाँ अध्याय 487
12. बारहवाँ अध्याय 505
13. तेरहवाँ अध्याय 531
14. चौदहवाँ अध्याय 563
15. पंद्रहवाँ अध्याय 587
16. सोलहवाँ अध्याय 606
17. सत्रहवाँ अध्याय 628
18. अठारहवाँ अध्याय 651
अंतिम पृष्ठ 723

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