गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 259

गीता रस रत्नाकर -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज

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पंचम अध्याय

योगी युक्त है और जो श्रद्धावान् मेरा भजन करता है वह युक्तम है। यहाँ प्रश्न उठता है कि इस कथन में भजन और भक्त की प्रशंसा ही अभीष्ट है या कुछ और है? श्रद्धालु ने भगवान् को तो देखा ही नहीं है। वह श्रद्धालु है, भजन करता है और केवल युक्त नहीं, युक्तम् है। वहाँ भजन की प्रेरणा के लिए ही उसको युक्तम कहा गया है। यहाँ वास्तव में वह ‘योगिनामपि सर्वेषाम्’ श्रेष्ठ हो, इसके लिए उसको युक्तम् नहीं कहा गया है। गीता में यह कथन भी भगवान् का ही है कि-

श्रद्दधाना मत्परमा भक्तास्तेऽतीव मे प्रियाः।[1]
अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च।[2]

इसके एक ओर है भक्त और दूसरी ओर है ‘तेऽतीव मे प्रियाः श्रद्दधाना मत्परमाः’ यह तो ऐसा ही है जैसे कोई बच्चे से कहे कि शाबास बेटे, मैं तुम्हारे बड़े भाई से तुम्हें ज्यादा प्यार करता हूँ। इस पर बच्चा बेचारा उत्साहित हो जायेगा। लेकिन हम यहाँ उस बाप को नहीं जोड़ते हैं। गीता के बारहवें अध्याय में भी इसी प्रकार की बातें आयी हैं जैसे- ‘मय्येव मन आधत्स्व’- एक, ‘अथ चित्तं समाधातुं न शक्नोषि मयि स्थिरम्’- दो, ‘अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनंजय’- तीन, ‘भ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव’- चार, ‘मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन्सिद्धिमवाप्स्यसि’- पाँच और ‘अथैतदप्यशक्तोऽसि कुर्त्तुं मद्योगमाश्रितः।’‘सर्वकर्मफलत्यागं ततः कुरु’- यह क्या हुआ? सबके पीछे यही पड़ा न! एक नम्बर हो गया बुद्धि-मन का समर्पण, दूसरा हो गया अभ्यास, तीसरा हो गया मतर्थ कर्म, चौथा हुआ सर्वकर्म- फलत्याग और जब फल बताना हुआ तो बोले कि- ‘त्यागाच्छान्तिरनन्तरम्’।

श्रेयो हि ज्ञानमभ्यासाज्ज्ञानाद्ध्यानं विशिष्यते।
ध्यानात्कर्मफलत्यागस्त्यागाच्छान्तिरनन्तरम्।। [3]

इसमें जो चीज चौते नम्बर की थी, उसको पहले नम्बर पर पहुँचा दिया। बात यह है कि हमारा यह ग्वारिया बोलने में इतना निपुण है कि इसकी बात समझना बड़ा मुश्किल पड़ता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (12.20)
  2. (12.13)
  3. (12.13)

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गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. पहला अध्याय 1
2. दूसरा अध्याय 26
3. तीसरा अध्याय 149
4. चौथा अध्याय 204
5. पाँचवाँ अध्याय 256
6. छठवाँ अध्याय 299
7. सातवाँ अध्याय 350
8. आठवाँ अध्याय 384
9. नववाँ अध्याय 415
10. दसवाँ अध्याय 465
11. ग्यारहवाँ अध्याय 487
12. बारहवाँ अध्याय 505
13. तेरहवाँ अध्याय 531
14. चौदहवाँ अध्याय 563
15. पंद्रहवाँ अध्याय 587
16. सोलहवाँ अध्याय 606
17. सत्रहवाँ अध्याय 628
18. अठारहवाँ अध्याय 651
अंतिम पृष्ठ 723

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