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गीता रस रत्नाकर -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
चतुर्थ अध्याययह डिजाइन हुई उसकी जाति, उसी का नाम आकृति है। वह मशीन कितनी गर्मी-सर्दी सह सकेगी- यह हुआ उसका सुख-दुख और कितने चक्कर लगाने के बाद बेकार हो जायेगी- यह हुई उसकी आयु। इस प्रकार हम कोई मशीन बनाते समय निश्चय करते हैं कि वह कब तक काम करेगी, उसकी आयु क्या होगी? उसकी डिजाइन माने शक्ल सूरत क्या होगी और वह कितनी गर्मी-सर्दी सह सकेगी? इसी तरह जब यह मनुष्य शरीर आरब्ध हुआ तब उसकी शक्ल सूरत से ग्रहण होने वाली, ‘आकृतिग्रहण’ जाति निश्चित हुई। सुख-दुख के वेग को सहन करने की जितनी सामर्थ्य माने यह कितनी डिग्री तक बुखार सह सकेगी, इसका निर्धारण हुआ। महाराज क्या बताऊँ? हमारे पास पहले एक साधु रहते थे, जो प्रतापगढ़ या जौनपुर की ओर के थे। एक दिन बोले, ‘महाराज! हमरे तो बुखरिया हो गयी!’ कितना हुआ? यही दो सौ ढाई सौ डिग्री बुखार कैसे हो गया? बोले कि नहीं महाराज, डेढ़ सौ डिगरिया तक तो बुखरिया हमेशा रहती है। यह है न आश्चर्य की बात! कहने का मतलब यह है कि शरीर में गर्मी-सर्दी सहने का सामर्थ्य निश्चित है कि यह कितने सुख-दुख का वेग सह सकता है और कितने चक्कर लगा सकता है। माने इसका जो फूलना-पचकना होता है वह भी यह कितनी बार फूल-पचक सकता है और डिजाइन इसकी क्या है, इसी को बोलते हैं आरब्ध। आरब्ध कहता है कि ठीक है बाबा! शरीर में जो प्रारब्ध है वह जब तक रहना तो तब तक रहे, लेकिन कर्म, कर्ता, कर्मफल की जो त्रिपुटी है और जो अनादि काल से अब तक संचित है, उसको यह ज्ञान तत्काल भस्म कर देता है। इसलिए पाप-पुण्य के झगड़े से आज ही छूट जाओ, सुखी दुखीपन के अभिमान से आज भी छूट जाओ। और नरक-स्वर्ग में जाने के झगड़े से आज ही छूट जाओ। तुम्हारा ईश्वर न तो पाताल में आधार-शक्ति कच्छप बनकर बैठा हुआ है और न बैकुण्ठ में। वैसे पाताल में भी है, बैकुण्ठ में भी है। लेकिन जब पहले यहाँ होगा तब न पाताल और बैकुण्ठ में उसकी सिद्धि होगी! यदि साक्षात् अपरोक्ष नहीं होगा तो बैकुण्ठ-पाताल में भी नहीं होगा। तब क्या सृष्टि के आदि में है, अंत में है? हे भगवान्, ईश्वर को फेंक रहे हो आदि में और अंत में? यह देखो कि इस समय कौन है? फिर सब अज्ञान भस्म हो जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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