गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 212

गीता रस रत्नाकर -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज

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चतुर्थ अध्याय

वह कछुआ भी है, मछली भी है, सूअर भी है, घोड़ा भी है, कोल भी है, पीपल भी है, औरत भी है, मर्द भी है, हाथी भी है और रोशनी भी है। वह क्या नहीं है? ‘सस सर्वम् अभवत्’। इसलिए आप अवतार का सिद्धांत बाइबिल पढ़कर, कुरान पढ़कर, सत्यार्थ- प्रकाश पढ़कर निश्चित मत करना। पहले निखिल जगत् का अभिन्ननिमित्तोपादान कारण है परमेश्वर- इस बात का निश्चय कर लेना और फिर देखना कि ईश्वर का अवतार बिल्कुल बुद्ध्यारूढ़ हो जायेगा। यह कोई बेअकली की बात नहीं, अक्लमन्दी की बात है। इसके बिना एक विज्ञान से सर्व विज्ञान की प्रतिज्ञा पूरी नहीं होगी। लौह-मृत्तिका आदि के दृष्टान्त सिद्ध नहीं होंगे और ‘सर्वं खल्विदं ब्रह्म’, ‘ब्रह्मवैदं विश्वमिदं वरिष्ठं’, ‘आत्मैवेदं सर्वम्’, ‘स एवेदं’, ‘अहमेवेदं सर्वम्’- ये जो श्रुतियाँ हैं इनमें से एक भी श्रुति संगत नहीं होगी। इसलिए अवतार सिद्धांत सर्वथा युक्तियुक्त साक्षी अनुभवारूढ़ है। इसी से प्रकृति और माया की सिद्धि होती है। प्रकृति माने आदत। उनकी यह प्रकृति है, उनका यह स्वभाव है। ईश्वर की प्रकृति है कि वह अद्वितीय होने पर भी सर्वरूप में प्रकट होता है और सर्वरूप में प्रकट होकर भी परिणामी नहीं होता। ‘आत्ममायया’- इसलिए कहा कि वह प्रकृतितः सर्वरूप से प्रकट होता है और ‘मायया’ इसलिए कहा है कि वस्तुतः वह अपने स्वरूप से प्रकट होता है और ‘मायया’ इसलिए कहा है कि वस्तुतः वह अपने स्वरूप का परित्याग नहीं करता, ज्यों का त्यों रहता है। ‘मायया’ का अर्थ यह भी है कि वह ऐसा जादूगर है, जो अपने को तरह-तरह का दिखा देता है, किन्तु रहता वही है। इसलिए वह किसी भी तरह का दिखे, है वही।

अब आओ आगे चलें! भगवान् अपने अवतार का काल और प्रयोजन दोनों बताते हैं।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।[1]

जब धर्म का लोप होने लगता है, उस काल में भी अवतार होता है। देश में भी अवतार होता है और प्रयोजनवश भी अवतार होता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (7)

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गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. पहला अध्याय 1
2. दूसरा अध्याय 26
3. तीसरा अध्याय 149
4. चौथा अध्याय 204
5. पाँचवाँ अध्याय 256
6. छठवाँ अध्याय 299
7. सातवाँ अध्याय 350
8. आठवाँ अध्याय 384
9. नववाँ अध्याय 415
10. दसवाँ अध्याय 465
11. ग्यारहवाँ अध्याय 487
12. बारहवाँ अध्याय 505
13. तेरहवाँ अध्याय 531
14. चौदहवाँ अध्याय 563
15. पंद्रहवाँ अध्याय 587
16. सोलहवाँ अध्याय 606
17. सत्रहवाँ अध्याय 628
18. अठारहवाँ अध्याय 651
अंतिम पृष्ठ 723

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