गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 161

गीता रस रत्नाकर -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज

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तृतीय अध्याय

नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्राकर्मण: ।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मण: ॥8

‘नियतं कुरु कर्म त्वं- नियतं शास्त्रोक्तम्। यस्मिन् कर्मणि अधिकृतः तत्।’ तुम जिस कर्म के अधिकारी हो, उस कर्म को निश्चित रूप से करो।

कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः’- देखो, अकर्मण्यता तमो गुण है, ‘निद्रालस्यप्रमादोत्थ’ है। न करने की अपेक्षा तो करना अच्छा है। तुम्हारा यह रोना ठीक नहीं कि हाय-हाय हमारा रिश्तेदार मर जायेगा; हम राज्य लेकर क्या करेंगे? कोई साथ नहीं हमारे! इस प्रकार मन में शोक भरा है, मोह भरा है, ममता भरी है, विषाद भरा है और ये सब तुम्हें कर्तव्य से विमुख करने वाले हैं। असल में कर्म संकल्प से करना चाहिए। हम अपने कर्तव्य की पूर्ति के लिए कर्म करते हैं- यह कल्पना सुंदरर है। नहीं करोगे तो प्रत्यवाय होगा, पाप लगेगा। प्रत्यवाय माने क्या होता है? ‘प्रति’ माने प्रतीप, ‘अव’ माने नीचे और ‘आय’ माने गति। प्रत्यवाय माने जहाँ हम जाना चाहते हैं वहाँ से उलटे, विपरीत जा रहे हैं और जहाँ से ऊपर उठना चाहते हैं उऊसकी जगह नीचे जा रहे हैं। लक्ष्य प्राप्ति के विपरीत जाओगे कहाँ? कर्म करोगे तो तमोगुण का नाश होगा, रजोगुण का जागरण होगा। क्षत्रिय कर्म करोगे तो मानवता का भी स्फुरण होगा, मानव कर्म करोगे तो जीवत्व का भी स्फुरण होगा और जीव-कर्म करोगे तो ईश्वर का भी स्फुरण होगा। कर्म करोगे तो रास्ते पर चल पड़ोगे भाई! कर्म करना माने रास्ते मे पड़ना।

यदि कहो कि हम कभी-कभी गिर भी जाते हैं, तो कोई बात नहीं, गिरना मनुष्य का कोई अपराध नहीं है पर गिरकर फिर न उठना अपराध है और उठकर फिर अपने लक्ष्य की ओर न चलना अपराध है। इसलिए चलते रहो भाई!

उत्थातव्यं जागृतव्यं योक्तव्यं भूति-कर्मसु।
भविष्यतीत्येव मनः कृत्वा सततमव्यथैः।। [1]

अपने हृदय में पीड़ा का अनुभव मत करो। आशा रको कि पहुँचोगे लक्ष्य पर। मिलेंगे राम- यह निश्चय रखो। उठो, जागो, लक्ष्य की ओर बढ़ो। जिज्ञासु सावधान! तुम यह ध्यान में रक्खो की अकर्मण्यता से नियत कर्म श्रेष्ठ है- इसलिए भी कर्म करना चाहिए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (उद्योगपर्व 135.29.30)

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गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. पहला अध्याय 1
2. दूसरा अध्याय 26
3. तीसरा अध्याय 149
4. चौथा अध्याय 204
5. पाँचवाँ अध्याय 256
6. छठवाँ अध्याय 299
7. सातवाँ अध्याय 350
8. आठवाँ अध्याय 384
9. नववाँ अध्याय 415
10. दसवाँ अध्याय 465
11. ग्यारहवाँ अध्याय 487
12. बारहवाँ अध्याय 505
13. तेरहवाँ अध्याय 531
14. चौदहवाँ अध्याय 563
15. पंद्रहवाँ अध्याय 587
16. सोलहवाँ अध्याय 606
17. सत्रहवाँ अध्याय 628
18. अठारहवाँ अध्याय 651
अंतिम पृष्ठ 723

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