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गीता रस रत्नाकर -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
द्वितीय अध्यायहम यह चीज नहीं लेंगे। यहाँ ऐसा बोलने में कोई अहंकार नहीं है। इसलिए नहीं है कि आप ऐसा कहने से संग्रह-परिग्रह से बच जायेंगे। लेकिन यदि कहीं किसी रास्ते पर चलना हो और आप कहें कि हम संन्यासी हैं, आगे-आगे चलेंगे और तुम गृहस्थी होने के कारण पीछे-पीछे चलोगे, तो यह आपका अहंकार है। दूसरे को पीछे करने में अहंकार का सदुपयोग हो गया। इसलिए अहंकार को अपनी जगह पर रहने दो। किसी ने आकर कहा कि हमारे मुकदमे में झूठी गवाही दे दो, तो कहो कि हम पंडित हैं, ब्राह्मण हैं, रोज संध्या-वन्दन करते हैं, गायत्री का जप करते हैं, हमारा काम झूठी गवाही देना नहीं है। इस पर यदि वह कहे कि पंडितजी, आप तो बड़े अहंकारी हैं,तो बोलो कि हमारा अहंकार हमको मुबारक हो। हम तुम्हारी झूठी गवाही नहीं देंगे। यह बहुत बढ़िया अहंकार है। काशी में एक पंडितजी थे, अभी भी हैं। उन्होंने एक दूसरी जाति की लड़की से शादी कर ली। आठ-दस-पंद्रह वर्ष हो गये। एक दिन में उनके घर गया तो उनकी वह दूसरी जाति की पत्नी मेरे पास आकर रोने लगी और बोली कि स्वामीजी, जब मेरे पति पंडितजी महाराज मुझसे कहते हैं कि तू शुद्र है, तब मेरे प्राण सूख जाते हैं। व्याह किया, बच्चे हुए, खान-पान सब साथ चल रहा है और अब मुझे शूद्र कहकर मेरा तिरस्कार करते हैं! मैं उस स्त्री को क्या उत्तर देता है? मैंने मन ही मन कहा कि पंडितजी का ब्राह्मणत्व तो पहले ही नष्ट हो गया। अब उसका कैसा अभिमान? देखो, निरहंकार शब्द का अर्थ संस्कृत भाषा में अहंकार का नाश नहीं है, जैसे ‘अहंकारात् निष्क्रान्ताः निरहंकाराः।’ इसलिए अहंकार को अपनी जगह पर रहने दो। एक अहंकार वह है, जो आँख से धरती को देखता है और पाँव से उस पर चलता है। आँख अपना संदेश अहं के पास पहुँचाती है कि रास्ता ठीक है और अहं अपना संदेश पाँव के पास पहुँचाता है कि चलो। आँखों और पाँवों में अगर एक ही अहं काम न करता होता तो आँख से रास्ता देखने और पाँव से चलने के दोनों काम एक साथ कैसे होते? इसलिए एक अहंकार ही आँख से देखता है और पाँव से शरीर को चलाता है। लेकिन तुम कौन हो? यह अहंकार तुम्हारा स्वरूप नहीं है। तुम तो असंग, अद्वय ब्रह्म एक हो और जैसे हड्डी-मांस का शरीर अपना काम कर रहा है, वैसे ही एक सूक्ष्म शरीर में बसा हुआ बाधित अहंकार अहंकाराभास अपना काम कर रहा है। आभास के द्वारा कर्म हो रहा है और तुम उसके साक्षी हो।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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