गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 140

गीता रस रत्नाकर -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज

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द्वितीय अध्याय

तो जिसकी इंद्रियाँ अपने वशमें है, उसकी प्रज्ञा प्रतिष्ठित है। जब वह कहे कि आत्मा ब्रह्रा है. तो उसकी बुद्धिका कभी तिरस्कार नही करन। यह बड़ी प्रतिष्ठित, बड़ी इज्जतदार प्रज्ञा है।

। या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।। [1]

पश्यतो मुनेः’- अरे, यह मुनि आँखवाला है, देख रहा है। इसकी तरह जिसकी आँखें खुली होती हैं, वही परमार्थ देखती हैं। जिस परमार्थ के संबंध में सारे प्राणी सोते हैं, यह नहीं जानते कि परमार्थ क्या है, वह है निशा। ‘न शं यस्मां सा निशा’- जिसमें शान्ति न मिले, उसका नाम निशा। अथवा ‘नितरां शं यस्यां सा निशा’- जिसमें खूब शान्ति है, उसका नाम है निशा। एक कवि ने कहा है कि जिसमें परिन्दे भी सोते हैं, पेड़-पौधे भी विश्राम का अनुभव करते हैं, उस परमार्थ को संसारी, व्यवहारी लोग नहीं जानते हैं; किन्तु उसमें संयमी पुरुष जागता है। संयमी का एक पर्यायवाची शब्द भी है। पूर्व प्रसंग भी यही है कि ‘इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यः निगृहीतानि’ अर्थात् इन्द्रियोर्था से जिसकी इन्द्रियाँ निगृहीत हैं, उसका नाम संयमी है। योगदर्शन में संयम शब्द पारिभाषिक शब्द है और वह उनका अपना ही है। पारिभाषिक शब्द भी बनते-बिगड़ते रहते हैं। पाणिनि ने कहा है कि वृद्धि होती है। वृद्धि माने धन की वृद्धि, जनकी वृद्धि नहीं। तब किसकी वृद्धि? उन्होंने कहा कि ‘वृद्धिरादैच्’- यहाँ यह शब्द पारिभाषिक हो गया। यह परिभाषा उनकी अपनी है; यह मत समझना कि वेदान्त में वृद्धि शब्द आये, तो उसका अर्थ वही है। ऐसा अर्थ नहीं होता। इसी से अपने मन से जो लोग शास्त्र पढ़ते हैं, वे शास्त्र की परिभाषा न जानने के कारण गलत अर्थ समझ जाते हैं। योगसूत्र में संयम का अर्थ है ‘त्रयम् एकसंयमः’- [2]धारणा, ध्यान और समाधि-तीनों का विषय जहाँ एक होता है। धारणा माने स्थान की उपाधि से चित्त की एकाग्रता, ध्यान माने काल की उपाधि से चित्त की एकाग्रता और समाधि माने वस्तु विशेष में चित्त की एकाग्रता। यह उसका विवेक है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (69)
  2. (3.2)

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गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. पहला अध्याय 1
2. दूसरा अध्याय 26
3. तीसरा अध्याय 149
4. चौथा अध्याय 204
5. पाँचवाँ अध्याय 256
6. छठवाँ अध्याय 299
7. सातवाँ अध्याय 350
8. आठवाँ अध्याय 384
9. नववाँ अध्याय 415
10. दसवाँ अध्याय 465
11. ग्यारहवाँ अध्याय 487
12. बारहवाँ अध्याय 505
13. तेरहवाँ अध्याय 531
14. चौदहवाँ अध्याय 563
15. पंद्रहवाँ अध्याय 587
16. सोलहवाँ अध्याय 606
17. सत्रहवाँ अध्याय 628
18. अठारहवाँ अध्याय 651
अंतिम पृष्ठ 723

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