गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 14

गीता रस रत्नाकर -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज

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प्रथम अध्याय

दुर्योधन आगे कहता है सबलोग अपने-अपने स्थान पर, मोर्चे पर खड़े हो गये हैं। अब आपका कर्तव्य है कि सेनापति की रक्षा करें।

भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि। [1]

आप सब भीष्म की ही रक्षा करें। एक विनोदी पुरुष ने ऐसी टीका की है कि दुर्योधन के मन में यह बात थी कि भीष्मपितामह सेनापति तो बने हैं, लेकिन ये कहीं कुछ गड़बड़ न कर दें। इसलिए वह बोला कि आपलोग इनको घेरकर रखना। भीष्म के ऊपर हमारा जितना विश्वास है, उससे ज्यादा विश्वास आप लोगों पर है।

दुर्योधन मतलबी है और मतलबी लोग जिससे बात करते हैं, उसी के ढंग की बात करते हैं।

अब भीष्मपितामह ने समझा कि ओहो, हम हो गये रक्ष्य और सब हमारे रक्षक हो गये। इसलिए दुर्योधन की बात का आदर करते हुए कुरु-वृद्ध-पितामह भीष्म ने सिंहनाद करके शंखनाद किया। यहाँ ‘शंख’ का अर्थ देखो- ‘शं’ माने ‘खं’ माने छिद्र। ‘शं खं यत्र’ अर्थात् जिसके छिद्र में शांति है। अब तो ‘सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत्’- शंख बजा और इतना भयंकर बजा कि दूसरे बाजों को बजाने की जरूरत ही नहीं पड़ी। दूसरे बाजे शंख ध्वनि की चोट से ही बजने शुरू हो गये। ‘अभ्यहन्यन्त’ यहाँ कर्म ही कर्ता हो गया। जिन बाजों को बजाना चाहिए था, वे सब के सब बिना बजाये ही बजने लगे। बड़ा भारी शब्द हुआ।

देखो, युद्ध छेड़ा गया कौरवों की ओर से, युद्ध की घोषणा हुई कौरवों की ओर से। आप इसमें कुछ उलटापन देखते हैं कि नहीं? राज्य छिना हुआ था पाण्डवों का, उस पर कब्जा कर रखा था कौरवों ने। यदि अपना राज्य वापिस कराना था, लौटाना था तो पाण्डवों की ओर से पहले शंख बजना चाहिए कि अब हम अपना राज्य, जो तुम्हारे कब्जे में है, उसे लौटाने के लिए युद्ध प्रारम्भ करते हैं। परंतु कौरवों को त्वरा थी। वे समझते थे कि जो पहले आक्रमण कर देगा, वह विजयी होगा। इसलिए पहले उन्होंने ही युद्ध छेड़ दिया।

महाभारत को जब आप बहुत ढूढ़ेंगे तब उसमें आपको दुर्योधन के सारथि का नाम मिलेगा। महाभारत में सारथी का नाम है तो सही, पर बहुत ढूँढ़ने पर ही मिलेगा। लेकिन अर्जुन के सारथि को देखिये-

ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ।[2]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 11
  2. 14

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गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. पहला अध्याय 1
2. दूसरा अध्याय 26
3. तीसरा अध्याय 149
4. चौथा अध्याय 204
5. पाँचवाँ अध्याय 256
6. छठवाँ अध्याय 299
7. सातवाँ अध्याय 350
8. आठवाँ अध्याय 384
9. नववाँ अध्याय 415
10. दसवाँ अध्याय 465
11. ग्यारहवाँ अध्याय 487
12. बारहवाँ अध्याय 505
13. तेरहवाँ अध्याय 531
14. चौदहवाँ अध्याय 563
15. पंद्रहवाँ अध्याय 587
16. सोलहवाँ अध्याय 606
17. सत्रहवाँ अध्याय 628
18. अठारहवाँ अध्याय 651
अंतिम पृष्ठ 723

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