गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
चौथा अध्याय
अपाने जुहृति प्राणं प्राणेऽपानं तथापरे । व्याख्या- पूरक, कुम्भक और रेचकपूर्वक प्राणायाम करना ‘प्राणायामरूप यज्ञ’ है। प्राण-अपान को अपने-अपने स्थान पर रोक देना ‘स्तम्भवृत्ति (चतुर्थ) प्राणायाम रूप यज्ञ’ है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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