गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
चौथा अध्याय
एवं ज्ञात्वा कृतं पूर्वैरपि मुमुक्षुभि: । व्याख्या- भगवान् का मत है कि मुमुक्षा जाग्रत होने पर भी कर्मों का त्याग नहीं करना चाहिये, प्रत्युत कर्तृत्वाभिमान तथा फलासक्ति का त्याग करके कर्तव्य कर्म करते रहना चाहिये। कर्म करने से बन्धन होता है, पर कर्मयोग से मोक्ष (विश्राम) प्राप्त होता है। किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिता: । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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