गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
चौथा अध्याय
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागश: । व्याख्या- चारों वर्णों की रचना मेरे द्वारा की गयी है-इस भगवद्वचन से सिद्ध होता है कि वर्ण जन्म से होता है, कर्म से नहीं। कर्म से तो वर्ण की रक्षा होती है। जैसे सृष्टि-रचनारूप कर्म करने पर भी भगवान अकर्ता ही रहते हैं, ऐसे ही भगवान का अंश जीव भक कर्म करते हुए अकर्ता ही रहता है- ‘शरीरस्थोऽपि कौन्तेय न करोति न लिप्यते’[1]। परन्तु जीव अहम से सम्बन्ध जोड़कर अज्ञानवश अपने को कर्ता मान लेता है-‘अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते’[2]। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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