गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
तीसरा अध्याय
कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादय: । व्याख्या- जनकादि राजाओं ने भी कर्मयोग के द्वारा ही मुक्ति प्राप्त की थी। इससे सिद्ध होता है कि कर्मयोग मुक्ति का स्वतन्त्र साधन है। यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन: । व्याख्या- समाज में जिस मनुष्य को लोग श्रेष्ठ मानते हैं, उसपर विशेष जिम्मेवारी रहती है कि वह ऐसा कोई आचरण न करे तथा ऐसी कोई बात न कहे, जो लोक-मर्यादा तथा शास्त्र-मर्यादा के विरुद्ध हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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