गीता प्रबोधनी -रामसुखदास पृ. 52

गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास

दूसरा अध्याय

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ध्यायतो विषयान्पुंस: संगस्तेषूपजायते ।
संगात्सञ्जायते काम: कामात्क्रोधोऽभिजायते ॥62॥

क्रोधाद्भवति सम्मोह: सम्मोहात्स्मृतिविभ्रम: ।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ॥63॥

विषयों का चिन्तन करने वाले मनुष्य की उन विषयों में आसक्ति पैदा हो जाती है। आसक्ति से कामना पैदा होती है। कामना से (बाधा लगने पर) क्रोध पैदा होता है। क्रोध होने पर सम्मोह (मूढ़भाव) हो जाता है। सम्मोह से स्मृति भ्रष्ट हो जाती है। स्मृति भ्रष्ट होने पर बुद्धि (विवेक) का नाश हो जाता है। बुद्धि का नाश होने पर मनुष्य का पतन हो जाता है।
 

व्याख्या- विषय भोगों को भोगना तो दूर रहा, उनका राग पूर्वक चिन्तन करने मात्र से साधक पतन की ओर चला जाता है; कारण कि भोगों का चिन्तन भी भोग भोगने से कम नहीं है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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