गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
दूसरा अध्याय
स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव । व्याख्या- मन की स्थिरता की अपेक्षा बुद्धि की स्थिरता श्रेष्ठ है; क्योंकि मन की स्थिरता से तो लौकिक सिद्धियाँ प्रकट होती हैं, पर बुद्धि की स्थिरता से कल्याण हो जाता है। मन की स्थिरता है- वृत्तियों का निरोध और बुद्धि की स्थिरता है- उद्देश्य की दृढ़ता। त्याग उसी का होता है जो वास्तव में सदा ही त्यक्त है। कामना स्वयंगत न होकर मनोगत है। परन्तु मन के साथ तादात्म्य होने के कारण कामना स्वयं में दीखने लगती है। जब साधक को स्वयं में सम्पूर्ण कामनाओं के अभाव का अनुभव हो जाता है, तब उसकी बुद्धि स्वतः स्थिर हो जाती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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